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पाठ २ : ध्वनि संबन्धी विशेषताएँ
पाठमाला के अलावा
आगमग्रन्थों में प्राकृत-व्याकरण के कतिपय नियमों का विवेचन हुआ है । संभव है, प्रारम्भ में प्राकृत में ही प्राकृत का कोई व्याकरण रहा हो, किन्तु आज ऐसा कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । प्राकृत के जो भी व्याकरण आज हैं, वे सभी संस्कृत में हैं । सब जानते हैं, संस्कृत का एकः व्याकरणसम्मत, व्यवस्थित रूप रहा है, अतः वैयाकरणों ने प्राकृत के स्वरूप आदि का विवेचन-विश्लेषण भी इसी चली आती शैली में किया है; किन्तु संस्कृत व्याकरण से भिन्न और विशिष्ट प्रयोग, प्रवृत्तियाँ जो प्राकृत में हैं, उनका विस्तृत विवेचन हुआ है । आचार्य हेमचन्द्र और वररुचि के प्राकृत व्याकरण प्राकृत के स्वरूप पर भरपूर प्रकाश डालते हैं । जर्मन विद्वान् डॉ. आर. पिशल के प्राकृत भाषाओं का व्याकरण ग्रन्थ में प्राकृत के विभिन्न रूपों (व्यावर्तनों) को विस्तार से समझाया गया है। कई अन्य ग्रन्थ भी हैं, किन्तु प्राकृत को सरल-सुबोध शैली में सीखने-सिखाने की दृष्टि से आज कोई बढ़िया किताब उपलब्ध नहीं है । विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों की बात अलग है, उस दृष्टि से कई संकलन प्रकाश में आये हैं जिनमें पं. बेचरदास दोशी का प्राकृतमार्गोपदेशिका, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री के प्राकृत प्रबोध एवं अभिनव प्राकृत व्याकरण, श्री विजयकस्तूरसूरिकृत प्राकृत-विज्ञान पाठमाला तथा डॉ. कोमलचन्द जैन की प्राकृत प्रवेशिका उल्लेखनीय-उपयोगी पुस्तकें हैं । प्रस्तुत पाठमाला के लेखन में इनका उपयोग किया गया है ।
प्रस्तुत पाठमाला
इस पाठमाला में थोड़े में और सरल ढंग से प्राकृत को हृदयंगम कराने की विनम्र चेष्टा की गयी है। हमें विश्वास है, इसके माध्यम से पाठक
प्राकृत सीखें : १४
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