Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ भूमिका प्राकृत भाषा : स्वरूप एवं विकास प्राकृत : भारतीय आर्य भाषा __ भाषाविदों ने भारत-ईरानी भाषा प्रशाखा के अन्तर्गत 'भारतीय आर्य शाखा' परिवार का विवेचन किया है। प्राकृत इसी भाषा-परिवार की एक आर्य भाषा है। विद्वानों ने भारतीय आर्यभाषा परिवार की भाषाओं के विकास के तीन युग निश्चित किये हैं 1. प्राचीन भारतीय आर्यभाषाकाल (1600 ई.पू. से 600 ई.पू.) 2. मध्यकालीन आर्यभाषाकाल (600 ई.पू. से 1000 ई. तक) 3. आधुनिक आर्यभाषाकाल (1000 ई. से वर्तमान समय तक) प्राकृत भाषा का इन तीनों कालों से किसी न किसी रूप में सम्बन्ध बना हुआ है। वैदिक भाषा प्राचीन आर्य भाषा है। उसका विकास तत्कालीन लोक-भाषाओं से हुआ है। भाषाविदों ने प्राकृत एवं वैदिक भाषा में ध्वनितत्त्व एवं विकास प्रक्रिया की दृष्टि से कई समानताएँ परिलक्षित की हैं। अतः ज्ञात होता है कि वैदिक भाषा और प्राकृत के विकसित होने का कोई एक लौकिक समान धरातल रहा है। किसी जनभाषा के समान तत्त्वों पर ही इन दोनों भाषाओं का भवन निर्मित हुआ है, किन्तु आज उस आधारभूत भाषा का कोई साहित्य या बानगी हमारे पास न होने से केवल हमें वैदिक भाषा और प्राकृत साहित्य में उपलब्ध समान भाषा-तत्त्वों के अध्ययन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि वैदिक भाषा के स्वरूप को अधिक उजागर करने के लिए प्राकृत भाषा का गहन अध्ययन आवश्यक है। प्राकृत भाषा का स्वरूप भी बिना वैदिक भाषा को जाने या समझे बिना स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। फिर भी दोनों स्वतंत्र और समर्थ भाषाएँ हैं, इस कथन में कोईविरोध नहीं आता। बोलचाल की भाषा अथवा कथ्य भाषा प्राकृत का वैदिक भाषा के साथ जो सम्बन्ध था, उसी के आधार पर साहित्यिक प्राकृत भाषा का स्वरूप निर्मित हुआ है। अतः

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88