Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी सो ममाओ फलं गिण्हइ वह मुझसे फल ग्रहण करता है। सो अम्हाहितो विरमइ वह हमसे दूर होता है। सीसो साहुत्तो पढइ शिष्य साधु से पढ़ता है। सीसा साहूहिंतो पढन्ति शिष्य साधुओं से पढ़ते हैं। साडित्तो वारिं पडइ साड़ी से पानी गिरता है। साडीहिंतो जलं पडइ साड़ियों से पानी गिरता है। नइत्तो वारिं णेमि मैं नदी से पानी ले जाता हूँ। अहं नईहिंतो वारिं आणेमि मैं नदियों से पानी लाता हूँ। फलत्तो रसं उप्पन्नइ - फल से रस उत्पन्न होता है। फलाहिंतो रसं जायइ फलों से रस पैदा होता है। खेत्तत्तो धन्न उप्पन्नइ ___- खेत से धान्य उत्पन्न होता है। खेत्तेहिंतो धन्नं उप्पन्नइ - खेतों से धान्य उत्पन्न होता है। षष्ठी विभक्ति-का/के की तं मज्झ पोत्थअं अत्थि - वह मेरी पुस्तक है। . ताणि पोत्थआणि अम्हाण सन्ति - वे पुस्तकें हमारी हैं। इदं तुज्झ कमलं अत्थि यह तेरा कमल है। इमाणि खेत्ताणि तुम्हाण सन्ति ये खेत तुम सबके हैं। सुहिणो णाणं वड्ढइ विद्वान् का ज्ञान बढ़ता है। सुहीण णाणं बड्ढइ विद्वानों का ज्ञान बढ़ता है। सिसुणो जणओ गच्छइ बच्चे का पिता जाता है। इमं सिसूण उववणं अत्थि - यह बच्चों का उपवन है। इमं वत्थं बालाअ अत्थि यह वस्त्र बालिका का है। इमाणि वत्थाणि बालाण सन्ति - ये वस्त्र बालिकाओं के हैं। इमो पुत्तो माआअ अत्थि - यह पुत्र माता का है। इमाण माआण पुत्ता कत्थ सन्ति - इन माताओं के पुत्र कहाँ हैं? सो वत्थुणो वाबारं करइ - वह वस्तु का व्यापार करता है।

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