Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 22
________________ प्राकृत व्याकरण की संक्षिप्त जानकारी विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा है। यदि भाषा नहीं होती तो विचार सामुदायिक रूप धारण नहीं कर पाता। भाषा के विशिष्ट ज्ञान के लिए उसके व्याकरण ग्रन्थ पर ध्यान देना आवश्यक है। सर्वप्रथम यह जानना होगा कि व्याकरण का अर्थ क्या है? उसका प्रयोजन क्या है तथा इसका महत्त्व क्या है? व्याकरण शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है-वि+आ+कृ+ल्युट । 'वि' अर्थात् विशेष प्रकार से और 'आ' अर्थात् चारों ओर से तथा 'कृ' अर्थात् करना। अर्थात् व्याकरण वह शास्त्र है, जो चारों ओर से और विशेष प्रकार से भाषा-तत्त्व का नियमन करता है। _ 'व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते प्रकृतिप्रत्ययादयो यत्र तद् व्याकरणम्', जिसमें शब्दों के प्रकृति (मूल शब्द या धातु) और प्रत्ययों आदि का विवेचन किया जाता है, उसे व्याकरण कहते हैं। प्रयोजन 'साधुत्वज्ञानविषया सैषा व्याकरणस्मृतिः' (वाक्यपदीय 1-143)-साधु या शिष्ट-प्रयोगोचित शब्दों का ज्ञान कराना व्याकरण का उद्देश्य है। 'रक्षोहागमलध्वसंदेहाः प्रयोजनम्।' पतंजलि ने इस सूत्र में व्याकरण के पांच प्रयोजन बताये हैं-रक्षा, ऊह, आगम, लघु तथा असंदेह। व्याकरण के ये मुख्य प्रयोजन हैं। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि व्याकरण वह तत्त्व है, जिससे जन-सामान्य को भी भाषा समझने की अपूर्व दृष्टि प्राप्त होती है। व्याकरण शब्दों की शुद्धि सिखाता है, प्रकृति और प्रत्यय का विभाजन कर उत्सर्ग और अपवाद नियमों से किसी शब्द की साधुता और असाधुता का विवेचन कर उसे प्रयोग योग्य बना देता है, प्रत्ययों के द्वारा शब्द-रचना का मार्ग बताता है।

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