Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ 33 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी मुणी उवज्झायओ पढइ - मुनि उपाध्याय से (उपयोग पूर्वक) पढ़ता है। बीजत्तो अंकुरो जायइ - बीज से अंकुर उत्पन्न होता है। धणत्तो विज्जा सेट्ठा - धन से विद्या श्रेष्ठ है। 6. सम्बन्ध कारक षष्ठी-का, के, की जहाँ सम्बन्ध व्यक्त करना हो वहां षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही अन्य प्रसंगों में, विभिन्न शब्दों के योग में भी षष्ठी होती है; यथा इमो जिणस्स उवदेसो अत्थि - यह जिन का उपदेश है। मुणिणो णाणं वड्ढइ - मुनि का ज्ञान बढ़ता है। ते साहुस्स सम्माणं करंति - वे साधु का सम्मान करते हैं। पुत्तो माआअ सुमरइ - पुत्र माता को स्मरण करता है। 7. अधिकरण कारक सप्तमी में, पर वार्तालाप के वाक्य प्रयोग में कर्ता एवं कर्म के माध्यम से क्रिया का जो आधार होता है, उसे अधिकरण कहते हैं। यह आधार अनेक प्रकार का हो सकता है। सभी आधारों में सप्तमी विभक्ति के प्रत्ययों का प्रयोग शब्द के साथ किया जाता है, इसलिए इसको अEि करण कारक कहते हैं। सामान्यतया निम्न आधारों में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है रुक्खे पक्खिणो वसंति - वृक्ष पर पक्षी बसते हैं। आसणे उवरि पोत्यअं अत्थि - आसन के ऊपर पुस्तक है। तिलेसु तेलं अत्थि - तिलों में तेल है। हियए करुणा अत्थि हृदय में करुणा है। धम्मे अहिलासा अत्थि धर्म में अभिलाषा है। मोक्खे इच्छा अत्यि मोक्ष में इच्छा है। छत्तेसु जयकुमारो णिउणो - छात्रों में जयकुमार निपुण है। मम समणेसु आयरो अत्यि - मेरा श्रमणों में आदर है।

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