Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ 36 विशेषण कहते हैं, जैसे प्रथमा एकवचन प्रथमा बहुवचन उत्तमो साहू झाइ । उत्तमं कविं सो नमइ । 2. तुलनात्मक विशेषण उत्तमा साहुणो झायन्ति । उत्तमा कविणो ते नमन्ति । तुमं ममत्त कणीअसो अत्थि । मोहण तस कणिट्ठो पुत्तो अयि । 3. संख्यावाचक - जहां संख्यावाचक शब्द विशेषण बनता हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं, जैसे- एगो छत्तो पढइ । एगा बालिआ गच्छइ । धातुरूप क्रियावाची शब्दों को धातु कहते हैं । धातु साधारणतया एक स्वर की होती है, जैसे - कर्, मण आदि । शब्द रूपों की तरह धातु के रूपों में भी द्विवचन नहीं होता । प्राकृत में गणभेद ( धातुओं के वर्गीकरण) की व्यवस्था नहीं की जाती है । अकारान्त धातुओं को छोड़कर शेष धातुओं में आत्मनेपदी और परस्मैपदी का भेद नहीं माना जाता है । किन्तु अदन्त या अकारान्त धातुएं उभयपदी होती हैं । आकारान्त धातु में परस्मैपदी रूपवाली ही होती हैं । प्राकृत में व्यंजनान्त धातुएं नहीं होतीं । व्यंजनान्त धातुओं से अ विकिरण जोड़ा जाता है, जैसे- हस् + अ = हस, कर् + अ = कर । वर्तमानकाल अकारान्त को छोड़कर शेष धातुओं में अ विकरण विकल्प से जुड़ता है, जैसे, हो-होइ, ठाइ - ठाअइ । प्राकृत भाषा प्रबोधिनी प्राकृत में धातु द्वि-स्वर युक्त भी हो सकती है, जैसे- पेक्ख । प्राकृत में तीन पुरुष और दो वचन अर्थात् एकवचन और बहुवचन का प्रयोग होता है । ( द्विवचन का प्रयोग नहीं होता ।) काल के धातु प्रत्यय एकवचन इ, ए प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष एकवचन बहुवचन न्ति, न्ते, इरे सि, से बहुवचन इत्या ह उत्तम पुरुष एकवचन मि बहुवचन मो,मु,म

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