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विशेषण कहते हैं, जैसे
प्रथमा एकवचन
प्रथमा बहुवचन
उत्तमो साहू झाइ ।
उत्तमं कविं सो नमइ ।
2. तुलनात्मक विशेषण
उत्तमा साहुणो झायन्ति । उत्तमा कविणो ते नमन्ति ।
तुमं ममत्त कणीअसो अत्थि ।
मोहण तस कणिट्ठो पुत्तो अयि ।
3. संख्यावाचक - जहां संख्यावाचक शब्द विशेषण बनता हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं, जैसे- एगो छत्तो पढइ । एगा बालिआ गच्छइ ।
धातुरूप
क्रियावाची शब्दों को धातु कहते हैं ।
धातु साधारणतया एक स्वर की होती है, जैसे - कर्, मण आदि । शब्द रूपों की तरह धातु के रूपों में भी द्विवचन नहीं होता ।
प्राकृत में गणभेद ( धातुओं के वर्गीकरण) की व्यवस्था नहीं की जाती है ।
अकारान्त धातुओं को छोड़कर शेष धातुओं में आत्मनेपदी और परस्मैपदी का भेद नहीं माना जाता है । किन्तु अदन्त या अकारान्त धातुएं उभयपदी होती हैं । आकारान्त धातु में परस्मैपदी रूपवाली ही होती हैं ।
प्राकृत में व्यंजनान्त धातुएं नहीं होतीं । व्यंजनान्त धातुओं से अ विकिरण जोड़ा जाता है, जैसे- हस् + अ = हस, कर् + अ = कर ।
वर्तमानकाल
अकारान्त को छोड़कर शेष धातुओं में अ विकरण विकल्प से जुड़ता है, जैसे, हो-होइ, ठाइ - ठाअइ ।
प्राकृत भाषा प्रबोधिनी
प्राकृत में धातु द्वि-स्वर युक्त भी हो सकती है, जैसे- पेक्ख ।
प्राकृत में तीन पुरुष और दो वचन अर्थात् एकवचन और बहुवचन का प्रयोग होता है । ( द्विवचन का प्रयोग नहीं होता ।)
काल के धातु प्रत्यय
एकवचन
इ, ए
प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
एकवचन
बहुवचन न्ति, न्ते, इरे सि, से
बहुवचन
इत्या ह
उत्तम पुरुष
एकवचन
मि
बहुवचन
मो,मु,म