Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ 43 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी (2) परा (विपरीत)-पराजिअइ (पराजयते)। (3) ओ, अव (दूर)-ओसरइ, अवसरइ (अपसरति)। (4) सं (अच्छी तरह)-संखिवइ (संक्षिपति)। (5) अणु, अनु (पीछे या साथ)-अणुगमइ (अनुगच्छति), अणुमई (अनुमतिः)। (6) ओ, अव (नीचे, दूर, अभाव)-ओआसो, अवयासो (अवकाशः), ओअरइ (अवतरति)। (7) ओ, नि, नी (निषेध, बाहर, दूर)-निग्गओ (निर्गतः), नीसहो (निस्सहः), ओमालं, निम्मल्लं (निर्माल्यम्)। (8) दु, दू (कठिन, खराब)-दुन्नयो (दुर्नयः), दूहवो (दुर्भगः)। (9) अहि, अभि (ओर)-अहिगमणं (अभिगमनम्), अभिहणइ (अभिहन्ति)। (10) वि (अलग होना, बिना)-विणओ (विनयः), विकुब्बइ (विकुर्वति)। (11) अहि, अधि (ऊपर)-अहिरोहइ (अधिरोहति)। (12) सु, सू (सुन्दर, सहज)-सुअरं (सुकरम्), सूहवो (सुभगः)। (13) उ (ऊपर)-उग्गच्छइ (उद्गच्छति), उग्गओ (उद्गतः)। (14) अइ, अति (बाहुल्य, उल्लंघन)-अइसओ अतिसओ (अतिशयः), अच्चंतं (अत्यन्तम्)। (15) णि, नि (अन्दर, नीचे)-णियमइ (नियमति), निविसइ (निविशते)। (16) पडि, पइ, परि (ओर, उलटा)-पडिआरो (प्रतिकारः), परिट्ठा, पइट्ठा (प्रतिष्ठा)। (17) परि, पलि (चारों ओर)-परिवुडो (परिवृत्तः), पलिहो (परिघः)। (18) पि, वि, अवि (भी, निकट, प्रश्न)-किमवि, किं पि (किमपि), को वि (कोऽपि)। (19) ऊ, ओ, उव (निकट)-उवासणा (उपासना), ऊआसो; ओआसो, उवआसो (उपवासः), ऊज्झाओ, ओज्झाओ, उवज्झाओ (उपाध्यायः)। (20) आ (तक)-आसमुहं (आसमुद्रम्)।

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