Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी
दुहओ, दुहा (द्विधा) दो प्रकार सयं (स्वयम्) स्वयं धुवं (ध्रुवं) निश्चय
सया (सदा) हमेशा णिच्चं, निच्चं (नित्यम्) हमेशा सव्वओ (सर्वतः) सभी ओर पइदिणं (प्रतिदिनम्) प्रतिदिन सह (सह) साथ पगे-प्रातःकाल में
सहसा (सहसा) अचानक पच्छा (पश्चात्) पीछे
सिय, सिअ (स्यात्) कथञ्चित् पडिरूवं (प्रतिरूपम्) समान सुवे (श्वः) कल (आने वाला) परज्जु (परेयुः) कल, दूसरे दिन सू-निन्दासूचक परं (परम्) परन्तु
हरे (अरे) आक्षेप, रतिकलह, संभाषण परंमुहं (पराङ्मुखम्) विमुख हला-सखी के लिए सम्बोधन मुहु (मुहुः) बार-बार
हद्धि (हा धिक्!) निर्वेद, खिन्नता मा (मा) निषेध
हन्दि-विषाद, पश्चात्ताप आदि य (च) और
हु, खु-निश्चय, वितर्क, संभावना, रे-संभाषण
विस्मय लहु (लघु) शीघ्र
वेव-आमन्त्रण देव्वे-भय, वारण, विषाद, आमन्त्रण ब, व, विअ (इव) समान सइ (सदा) सदा
सइ (सकृत्) एक बार सक्खं (साक्षात्) प्रत्यक्ष
सज्जो (सद्यः) शीघ्र सद्धिं (सार्धम्) साथ
सणिअं (शनैः) धीरे अव्ययों के कुछ प्रकार (1) समुच्चय बोधक-एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ने वाले। जैसे
क. संयोजक-य, अह, अहो (अथ), उद, उ (तु), किंच आदि। ख. वियोजक-वा, किंवा, तु, किंतु आदि। ग. शर्तसूचक-जइ, चेअ, णोचेअ (नोचेत्), जइवि, तहवि, जदि आदि। घ. कारणार्थक-हि, तेण आदि। ङ. प्रश्नार्थक-उद, किं, किमुद, णु आदि। च. कालार्थक-जाव, ताव, यदा, तदा, कदा आदि।

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