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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी (2) मनोविकार सूचक-मन के भावों के बोधक। जैसे
क. अव्वो-दुःख, विस्मय, आदर, भय, पश्चात्ताप आदि। ख. हं-क्रोध। ग. हन्दि-विषाद, पश्चात्ताप, विकल्प, निश्चय, सत्य, ग्रहण आदि। घ. वेब्वे-भय, वारण, विषाद । ङ. हुं, खु-वितर्क, संभावना, विस्मय आदि। च. ऊ-आक्षेप, गर्हा, विस्मय आदि। छ. अम्मो, अम्हो-आश्चर्य। ज. रे, अरे, हरे-तिकलह।
झ. हद्धी-निर्वेद। उवसग्ग (उपसर्ग)
___ जो अव्यय क्रिया के पहले जुड़कर उसके अर्थ में वैशिष्ट्य या परिवर्तन करते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं। जैसे-हरइ (हरति ले जाता है), अवहरइ (अपहरति अपहरण करता है), आहरइ (आहरति लाता है), पहरइ (प्रहरति प्रहार करता है), विहरइ (विहरति विहार करता है) आदि।
संस्कृत के 22 उपसर्गों में से 'निस्' का अन्तर्भाव 'निर्' में और 'दुस्' का अन्तर्भाव 'दुर्' में करके प्राकृत में मूलतः 20 उपसर्ग हैं, जो स्वर-व्यंजन परिवर्तन से कई रूपों में मिलते हैं। जैसे-प (प्र), परा (परा), ओ-अव (अप), सं (सम्), अणु अनु (अनु), ओ अव (अव), नि नी ओ (निर), दु दू (दुर), अहि, अभि (अभि), वि (वि), अहि अधि (अधि), सु सू (सु), उ (उत्), अइ अति (अति), णि नि (नि), पडि पइ परि (प्रति), परि पलि (परि), पि वि अवि (अपि), ऊ ओ उव (उप), आ (आङ्)।
नोट-अप, अव और उप के स्थान पर 'ओ' विकल्प से होता है। उप के स्थान पर 'ऊ' भी होता है। अपि के अ का लोप भी विकल्प से होता है। स्वर के बाद में आने पर 'पि' को 'वि' हो जाता है। जैसे-केण वि, केणावि; तं पि, तमवि। 'माल्य' शब्द के साथ 'निर्' उपसर्ग को 'ओ' तथा 'स्था' धातु के साथ 'प्रति' उपसर्ग को 'परि' आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे-निर्माल्यम् > ओमालं, निम्मल्लं । प्रतिष्ठा < परिट्ठा, पइट्ठा। अर्थ और प्रयोग
(1) प (प्रकर्ष)-पभासेइ (प्रभाषते)।