Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 41
________________ 32 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 4. सम्प्रदान कारक चतुर्थी के लिए, को जिसके लिए कोई कार्य किया जाए या कोई वस्तु दी जाए तो उस व्यक्ति या वस्तु संज्ञा/सर्वनाम में सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक वाले शब्दों में चतुर्थी विभक्ति के प्रत्ययों का प्रयोग होता है, जैसे सावगो समणस्स आहारं देइ - श्रावक श्रमण के लिए आहार देता है। निवो माहणस्स धणं देइ - राजा ब्राह्मण को धन देता है। गुरू बालअस्स पोत्थअं देइ - गुरु बालक के लिए पुस्तक देता है। इस प्रकार की वस्तु देने में श्रद्धा, कीर्ति, उपकार आदि का भाव दाता के मन में होता है। सम्प्रदान कारक अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है, यथा णमो अरिहंताणं - अरिहंतों को नमस्कार। पुत्तस्स दुद्धं रोयइ - पुत्र को दूध अच्छा लगता है। जणओ पुत्तस्स कुज्झइ - पिता पुत्र पर क्रोधित होता है। साहू णाणस्स झाइ साधू ज्ञान के लिए ध्यान करता है। निवो कवीणं धणं देइ - राजा कवियों को धन देता है। साहूण णाणं हिअं अत्यि - साधुओं के लिए ज्ञान हितकर है। माआणं णमो - माताओं के लिए नमस्कार है। 5. अपादान कारक पंचमी-से (विलग) एक दूसरे से अलग होने को अपाय कहते हैं। जैसे-मोहन घोड़े से गिरता है, पेड़ से पत्ता गिरता है आदि। इस अलग होने की क्रिया को अपादान कहते हैं। अपादान कारक में पंचमी विभक्ति के प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। यथा मोहणो अस्सत्तो पडइ, रुक्खत्तो पत्तं पडइ आदि। पंचमी विभक्ति का प्रयोग कतिपय धातुओं, अर्थों एवं प्रसंगों में भी किया जाता है। उनमें से कुछ प्रमुख हैं सो चोरओ बीहइ - वह चोर से डरता है। जोद्धा चोरत्तो रक्खइ - योद्धा चोर से रक्षा करता है।

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