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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी
1. कर्त्ता कारक
प्रथमा - है, ने
शब्द के अर्थ, लिंग, परिमाण, वचन मात्र को बतलाने के लिए शब्द संज्ञा, सर्वनाम आदि में प्रथमा विभक्ति होती है। प्रथमा विभक्ति वाला शब्द वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का कर्त्ता होता है। उसके बिना क्रिया का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। अतः कर्त्ता कारक शब्द क्रिया की सार्थकता बताता है, जैसे- महावीरो गामं गच्छइ, पोग्गलो अचेयणो अत्थि । यहाँ गच्छ क्रिया का कर्त्ता महावीर है, अत्थि क्रिया का मूल सम्बन्ध पोग्गल से है । महावीरो प्रथमा विभक्ति में से सूचित करता है कि महावीर पुल्लिंग संज्ञा शब्द है और एकवचन है ।
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2. कर्म कारक
द्वितीया-को
जो कर्त्ता का अभीष्ट कार्य हो, क्रिया से जिसका सीधा सम्बन्ध हो उसको व्यक्त करने वाले शब्द में कर्म संज्ञा होती है। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। सामान्यतया किसी भी कर्त्ता-क्रिया वाले वाक्य के अन्त में 'किसको' प्रश्न क्रिया से जोड़ने पर कर्म की पहिचान हो जाती है। जैसे- 'राम फल खाता है' यहां किसको खाता है? प्रश्न करने पर उत्तर में फल शब्द सामने आता है। अतः फल कर्मसंज्ञक है। इसका द्वितीया का रूप 'फलं' वाक्य में प्रयुक्त होगा। इस तरह के प्राकृत वाक्य हैं
कुम्हारो घड कर
कुम्हार घड़ा बनाता है।
सो पण कर
वह पट ( कपड़ा) नहीं बनाता है ।
ाणी तवं तव
ज्ञानी तप करता है
सावो वयं गिues
श्रावक व्रत को ग्रहण करता है ।
सामान्यतः कर्म में द्वितीया विभक्ति के प्रयोग होने के साथ प्राकृत में अन्य विभक्तियों के प्रसंगों में भी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है 1
1. 'विना ' के साथ - अणज्जो अणज्जभासं विणा गाहेउं ण सक्कइ ।
-अनार्य अनार्य भाषा के बिना ग्रहण करने में समर्थ नहीं होता। (तृतीया के स्थान पर द्वितीया )
2. 'गमन' के अर्थ में सो उम्मग्गं गच्छन्तं मग्गे ठवेइ ।
- वह उन्मार्ग में जाते हुए को मार्ग में स्थापित करता है। (सप्तमी के स्थान पर द्वितीया)
3. 'श्रद्धा' के योग में - मोक्खं असद्धहंतस्स पाढो गुणं ण करे