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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी संस्कृत सूत्र से (लक्षण से) उत्पन्न अकार से परे विसर्ग को डो आदेश होता है। 1. अ के बाद आये हुए संस्कृत विसर्ग के स्थान में उस पूर्व अ को 'ओ' हो जाता है।
अग्रतः > अग्गओ
मनः + शिला = मणोसिला, मणसिला, मणासिला मोनुस्वारः 1/23 2. पद के अन्त में रहने वाले मकार का अनुस्वार होता है, यथा
गिरिम् > गिरिं
जलम् > जलं। 3. मकार से परे स्वर रहने पर विकल्प से अनुस्वार होता है, यथा
उसभम् + अजिअं = उसभंअजिअं, उसभमजिअं। 4. बहुलाधिकार रहने से हलन्त अन्त्य व्यंजन को भी मकार होकर अनुस्वार होता है, यथा
साक्षात् > सक्खं,
यत् > यं/जं। ङञणनो व्यञ्जने 1/25 ङ, ञ, ण और न के स्थान में व्यञ्जन परे होने पर अनुस्वार हो जाता है। यथा
पङ्क्तिः > पंती विन्ध्य > विंझो
कञ्चुकः > कंचुओ। (3) अव्यय संधिः
प्राकृत में अव्यय पदों में यह संधि पाई जाती है तथा यह संधि दो अव्यय पदों में होती है। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं
__ 1. पद से परे आये हुए अपि अव्यय के अ का लोप होता है। लोप होने के बाद . अपि का 'प' यदि स्वर से परे हो तो 'व' हो जाता है, यथा
केण + अपि = केणवि, केणावि किं + अपि = किंपि, किमवि।