________________
प्राकृत भाषा प्रबोधिनी
29
2. पद के उत्तर में रहने वाले इति अव्यय के आदि इकार का लोप होता है और स्वर से परे रहने वाले तकार को द्वित्व होता है, यथा
किं + इति = किंति
जं + इति = जंति ।
तह + इति = तहत्ति
3. त्यद् आदि सर्वनामों से पर में रहने वाले अव्ययों तथा अव्ययों से पर में रहने
वाले त्यदादि के आदि स्वर का लुक् बहुलता से होता है, यथा
एस + इमो
एसमो
अम्हे + एत्थ = अम्हेत्थ ।
=
विभक्ति एवं कारक
संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं में विभक्ति प्रत्ययों का प्रयोग आवश्यक है । विभक्ति से ही पता चलता है कि शब्द की संख्या क्या है, उसका कारक क्या है । प्राकृत में छह कारक एवं छह विभक्तियां होती हैं । चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति को एक मानने से सात के स्थान पर छह विभक्तियों के प्रत्यय ही प्रयुक्त होते हैं, जबकि अर्थ सात विभक्तियों के ग्रहण किये जाते हैं। संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों में लगने वाले प्रत्यय विभक्ति कहलाते हैं । क्रिया का जो उत्पादक हो, क्रिया से जिसका सम्बन्ध हो अथवा क्रिया की उत्पत्ति में जो सहायक हो, उसे कारक कहा गया है । प्राकृत में प्रयोग के अनुसार कारक और विभक्तियों के क्रम बदलते रहते हैं । फिर भी सामान्यतया कारक और
विभक्ति
के
सम्बन्ध इस प्रकार हैं
कारक
1. कर्ता
2. कर्म
3. साधन (करण)
4. सम्प्रदान
5. अपादान
6. सम्बन्ध 7. अधिकरण
विभक्ति
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
चिन्ह
है, ने
को ( को रहित भी)
से, के द्वारा
के लिए
से (विलग होने में)
का, के, की
में, पर