Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी (क) इ और उ का विजातीय स्वर के साथ संधि कार्य नहीं होता, यथा पहावलि + अरुणो पहावलिअरुणो (ख) ए और ओ के आगे यदि कोई स्वर वर्ण हो तो उनमें संधि कार्य नहीं होता है, यथा = = वणे + अडइ वणे अडइ देवीए एत्थ देवीए + एत्थ = 27 स्वरस्योत् 1/8 जो व्यञ्जनसंपृक्तस्वर ( व्यंजन से मिला हुआ स्वर) व्यंजन के लुप्त होने पर अवशिष्ट रहता है वह उद्वृत्त कहलाता है । उवृत्त स्वर परे होने पर स्वर की संधि नहीं होती है। उद्वृत्त स्वर का किसी भी स्वर के साथ संधि कार्य नहीं होता है, यथा (क, ग, च, ज, त, द, प, य और व- इत्यादि व्यंजनों के लुक् होने पर शेष रहे हुए स्वर को उद्वृत्त स्वर कहते हैं ।) निसा + अरो = निसा अरो रयणी + अरो = रयणी अरो (घ) कहीं-कहीं होता भी है, जैसे कुंभ + आरो = कुम्भारो सु + उरिसो = सूरिसो (ङ) तिप् आदि प्रत्ययों के स्वरों के साथ भी संधि कार्य नहीं होता है; यथाहोइ + इह = होइ इह (च) किसी स्वर वर्ण के रहने पर उसके पूर्व के स्वर का लोप विकल्प से होता है, यथा तिअस + ईसो = तिअसीसो तथा तिअसईसो गअ + इंदो = गइंदो तथा गअइंदो । (2) व्यंजन संधि प्राकृत में व्यंजन संधि के अधिक नियम नहीं मिलते, क्योंकि अन्तिम हलन्त व्यंजन का लोप हो जाने से सन्धिकार्य का अवसर ही नहीं आता है। इस संधि के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैंअतो डो विसर्गस्य 1 / 37

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88