Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 25 संधि सन्धानं सन्धिः। सम्यक् धीयते इति सन्धिः। वर्णानां समवायः सन्धिः। अर्थात् . मिलने को सन्धि कहते हैं। जब किसी शब्द में दो वर्ण निकट आने पर मिलते हैं तो उनके मेल से उत्पन्न होने वाले विकार को संधि कहते हैं। पदयोः संधिर्वा 1/5 संस्कृत (व्याकरण) में कही हुई सभी सन्धियां प्राकृत में दो पदों में विकल्प से होती हैं। प्राकृत में संधि की व्यवस्था विकल्प से होती है, नित्य नहीं। संधि के तीन भेद (1) स्वर संधि, (2) व्यंजन संधि, (3) अव्यय संधि। (1) स्वर संधि दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से जो ध्वनि में विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर-संधि कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-1. दीर्घ, 2. गुण, 3. विकृत वृद्धि संधि, 4. इस्व-दीर्घ और 5. प्रकृतिभाव संधि। 1. दीर्घ संधि ___ इस्व या दीर्घ अ, इ और उ से उनका सवर्ण स्वर परे रहे तो दोनों के स्थान में विकल्प से सवर्ण दीर्घ होता है; यथा दंड + अहिसो = दंडाहीसो, दंड अहिसो रमा + आरामो = रमारामो, रमा आरामो विसम + आयवो = विसमायवो, विसम आयवो रमा + अहीणो = रमाहीणो मुणि + इणो = मुणीणो गामणी + ईसरो = गामणीसरो मुनि + ईसरो = मुणीसरो गामणी + इणो = गामणीणो भाणु + उवज्झाओ = भाणूवज्झाओ भाणु + ऊसवो = भाणूसवो

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