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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी टो डः 1/195
स्वर से परे अनादि और असंयुक्त ट को ड होता है।
ट > ड - नटः-नडो, भटः-भडो। ठो ढः 1/199
स्वर से परे असंयुक्त और अनादि ठ को ढ होता है। ___ठ > ढ - मठः-मढो, सठः-सढो। डो लः 1/202
स्वर से परे असंयुक्त तथा अनादि ड को प्रायः ल होता है। ___ड > ल - तडागम्-तलायं, गरुडः-गरुलो। बो वः 1/237
स्वर से परे, असंयुक्त तथा अनादि ब को व होता है।
ब > व - अलाबू–अलावू, शबलः-सवलो। 3. अन्तिम व्यंजन परिवर्तन
प्राकृत में व्यंजनान्त शब्द नहीं होते हैं। प्राकृत में जो शब्द व्यंजन अन्त वाले होते हैं, उनका या तो लोप होता है या उन्हें स्वर में तथा स्वरसहित व्यंजन में परिवर्तित कर दिया जाता है। कहीं-कहीं अन्तिम व्यंजन को अनुस्वार में बदल दिया जाता है, यथा
1. अन्तिम व्यंजन का लोप; जैसे-यावत्-जाव, तावत्-ताव, यशस्-जसो। . 2. अन्तिम व्यंजन को म् आदेश होता है; जैसे-साक्षात्-सक्खं, यत्-जं, तत्-तं।
3. कुछ स्थलों में अन्तिम व्यंजन को अ आदेश होता है; जैसे-शरद्-सरओ, भिषक्-भिसओ।
4. कुछ स्थलों में अन्तिम व्यंजन को स आदेश होता है, जैसे-दिक्-दिसा।
5. स्त्रीलिंग में अन्तिम व्यंजन हो तो उसे आ आदेश होता है, जैसे सरित-सरिआ, संपद्-संपआ।। (2) संयुक्त व्यंजन
सरल व्यंजन द्वित्व होने पर उसे संयुक्त व्यंजन कहा जाता है।
जिन दो या दो से अधिक व्यंजनों के बीच में स्वर न हो तो उसे संयुक्त व्यंजन कहते हैं। प्राकृत में शब्द के प्रारम्भ में संयुक्त व्यंजन नहीं होते हैं। प्राकृत में भिन्न वर्गीय संयुक्त व्यंजन नहीं मिलता है। समान वर्गीय व्यंजनों के मेल से बने हुए संयुक्त व्यंजन