Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 30
________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 21 कहे जाते हैं । वे ये हैं-क, ग, च, ज, ट, ड, त, द, प, ब, ण, न, म, य, र, ल, व । संस्कृत में प्रयुक्त होने वाले ङ और ञ का प्रयोग प्राकृत में स्वतंत्र रूप से नहीं होता, किन्तु वर्गीय व्यंजन के साथ होता है, यथा- गङ्गा, पञ्च । ('श' और 'ष' का प्रयोग में नहीं होता है, अतः प्राकृत में 33 व्यंजनों के स्थान पर 29 व्यंजन होते हैं। व और व का अभेद मानने से व्यंजन 28 होते हैं ।) व्यंजन के दो प्रकार हैं (1) असंयुक्त व्यंजन, ( 2 ) संयुक्त व्यंजन | व्यंजन-परिवर्तन (1) असंयुक्त व्यंजन इसे सरल व्यंजन भी कहते हैं । क-ग-च-छ आदि व्यंजन स्वरसहित होते हैं, तब इन्हें सरल व्यंजन कहते हैं । सरल व्यंजन परिवर्तन आदेर्यो जः 1 / 245 तीन प्रकार के होते हैं 1. आदि व्यंजन परिवर्तन, 2. मध्य व्यंजन परिवर्तन, 3. अंतिम व्यंजन परिवर्तन । 1. आदि व्यंजन परिवर्तन : 1/228 स्वर से परे असंयुक्त अनादि न को ण होता है । यथा नरः - णरो, नदी - णई, निमग्नः - णिमग्गो । पद की आदि में य को ज होता है । य > ज; यशस् - जसो, यति-जई । कुब्ज - कर्पर- कीलके - कः खोपुष्पे 1 / 181 कुब्ज; कर्पर और कीलक शब्दों के क को ख होता है । क > ख; कुब्जः -खुज्जो, कीलकः - खीलओ । पाटि - परुष- परिघ - पारिखा - पनस - पारि भद्रे फः 1 / 232 ञिन्नन्त पटि धातु और परुषादि शब्दों के प को फ होता है । प > फ; परुषः - फरुसो, परिघः फलिहो ।

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