Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ 20 ( पुरुषः) पुरिसो + इति = पुरिसोत्ति । त्यदाद्यव्ययात् तत्स्वरस्य लुक् 1/40 त्यद् आदि शब्दों और अव्यय से परे त्यद् आदि शब्द तथा अव्यय हो तो उनके आदि स्वर का बहुलता से लुक् होता है । (स) सर्वनाम सम्बन्धी अव्यय के स्वर से परे सर्वनाम और अव्यय का स्वर हो तो आगे वाले पद के आदि स्वर का लोप हो जाता है I अम्हे + एत्य = अम्हेत्थ, जइ + अहं = जइहं । हैं, जैसे (द) स्वर से परे इव अव्यय हो तो इव का व्व हो जाता है । अनुस्वार से परे इव हो तो व ही होता है, द्वित्त्व नहीं होता; यथा साअरो व्व, प्राकृत भाषा प्रबोधिनी साअ + इव गेहं + इव = गेहंव | = व्यंजन जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं । प्राकृत में निम्न व्यंजन होते हैं क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व सह । उच्चारण के अनुसार व्यंजनों के दो भेद हैं- 1. अल्पप्राण, 2. महाप्राण । महाप्राण - जिन वर्णों में 'ह' की ध्वनि का प्राण मिलता है, वे महाप्राण कहलाते क् + ह = ख च् + ह = छ ये 12 हैं-ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, स, ह । अल्पप्राण - जिन वर्णों में 'ह' की ध्वनि का प्राण नहीं मिलता, वे सब अल्पप्राण

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88