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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 3. स्वरों का स्वरों में परिवर्तन
(अ) ऋ वर्ण का प्राकृत में अ, इ, उ और रि होता है, यथाऋतोऽत् 1/126
आदि ऋकार को अकार होता है।
__ ऋ> अ; घृतम्-घयं, कृतम्-कयं, वृषभः-वसहो, मृगः-मओ। इत्कृपादौ 1/128 कृपा आदि शब्दों में आदि ऋकार को इकार होता है।
ऋ > इ; कृपा-किवा, हृदयम्-हिययं, भंगारः-भिंगारो। उदृत्वादौ 1/131 ऋतु आदि शब्दों के आदि ऋकार को उकार होता है।
ऋ > उ; ऋतुः-उऊ, पृष्ठः-पुट्ठो, पृथिवी फुहई, वृत्तान्तः-कुत्तन्तो, कृदं कुंद इत्यादि।
ऋ > रि; ऋद्धिः-रिद्धि, ऋक्षः-रिच्छो, ऋषिः-रिसी आदि। (ब) कभी-कभी ऋके स्थान पर आ, ए, ओ और ढि भी होता है। यह नियम बहुत से शब्दों पर लागू नहीं है। लेकिन कुछ शब्दों पर इसका प्रभाव है, यथाकृशा-कासा, मृदुकं-माउक्क, वृन्तं-वेण्टं, वोण्टं।
(स) संस्कृत का ऋकारान्त शब्द प्राकृत में तीन प्रकार का होता है- अर, आर और उ। यथा संस्कृत पितृ शब्द में पिअर और पिउ तथा भातृ शब्द का भायर होता है। 4. अव्यय के स्वरों का लोप पदादपेर्वा 2/10 (अ) पद से परे अपि अव्यय के आदि अ का लोप विकल्प से होता है; यथा
केण + अपि = केणवि-केणावि।
जणा + अपि = जणवि-जणावि। इतेः स्वरात् तश्च द्विः 1/142
पद से परे इति के आदि स्वर का लोप होता है और स्वर से परे तकार को द्वित्व होता है।
(ब) पद से परे इति अव्यय के आदि इ का लोप होता है; यथा
(तथा) तह + इति = तहत्ति,