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प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 2. दीर्घ स्वर-आ, ई, ऊ, ए, ओ।
ए और ओ दीर्घस्वर हैं, परन्तु प्राकृत में संयोग परे होने पर ए और ओ को (उच्चारण की दृष्टि से) हस्व स्वर माना गया है, जैसे-एक्केक्कं (एकैकम्), आरोग्गं (आरोग्यम्)।
यद्यपि प्राकृत में 'ऐ' और 'औ' स्वर का प्रयोग नहीं होता है, फिर भी बहुलता के कारण कोई-कोई शब्द मिलते भी हैं, यथा- कैअवं (कैतवं) सौअरिअं (सौन्दर्यम्)
स्वर परिवर्तन प्राकृत में सामान्य रूप से स्वर-परिवर्तन की व्यवस्था इस प्रकार है1. दीर्घ स्वरों का इस्वीकरण, 2. इस्व स्वरों का दीर्धीकरण,
3. स्वरों को स्वर का आदेश, 4. अव्यय के स्वरों का लोप। 1. दीर्घ स्वरों का इस्वीकरण हस्वः संयोगे 1/84
संयोग परे होने पर प्रयोग के अनुसार दीर्घ को हस्व होता है।
(अ) प्राकृत में संयुक्त वर्ण का पूर्व अक्षर दीर्घ अर्थात् आ, ई, ऊ होते हैं वे क्रमशः अ, इ, उ में परिवर्तित हो जाते हैं, यथा
(क) आ-अ-आम्रम्-अंबं, ताम्रम्-तंबं । (ख) ई-इ-मुनीन्द्रः-मुणिन्दो, तीर्थम्-तित्थं। (ग) ऊ-उ-चूर्णः-चुण्णो, ऊर्मि-उम्मि।
(ब) यदि संयुक्त वर्ण का पूर्व वर्ण ए और ओ होता है तब ए-इ में और ओ-उ में परिवर्तित हो जाते हैं, यथा-नरेन्द्रः-नरिन्दो, नीलोत्पलम्-नीलुप्पलं । 2. इस्व स्वरों का दीर्धीकरण लुप्त-य-र-व-श-ष-सां श-ष-सां दीर्घः 1/43
जिस शब्द के य, र, व, श, ष, स का लोप हो गया है और श, ष, स शेष बचा है तो उन शब्दों के आदि स्वर को दीर्घ हो जाता है।
प्राकृत में संयुक्त वर्ण में एक वर्ण का लोप होने पर पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है, यथापश्यति-पासइ, शिष्यः-सीसो।