Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ 22 2. मध्य व्यंजन परिवर्तन क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् 1/177 क-ग-च-ज-त-द-प-य-व का प्रायः लुक् होता है, तथा अवर्णो य-श्रुतिः 1 / 180 क, ग, च, ज आदि का लोप होने पर शेष अवर्ण (अ, आ, आ... ) यदि अवर्ण से परे हो तो उसको यकार की श्रुति होती है । जैसे क > का लुक् - लोकः - लो, शकट::-सयढो । > लुक् नगरम् —–नयरं, नगः-नओ । > लुक् ज > लुक् - रजतं -रययं, गजः - गओ । > लुक् लता -लया, वितानं -विआणं । द > लुक् गदा - गया, यदि - जइ । प > लुक् – रिपुः–रिऊ, सुपुरुषः - सुउरिसो । य > लुक् - वियोगः - विओओ, वायुना - वाउणा । पो वः 2/231 प > व - ख> ह - स्वर से परे असंयुक्त और अनादि प को प्रायः व होता है । शपथः - सवहो, शापः - सावो । - - - वचनम् - वयणं, काचमणिः - कायमणि । ख-घ-थ-ध-भाम् 1 / 187 स्वर से परे असंयुक्त अनादिभूत ख, घ, थ, ध और भ को प्रायः ह होता है । ख, घ, थ, ध, भ का ह होता है । साखा - साहा, मुखं - मुहं । छह - मेघः-पेहो, माघः - माहो । थ ह ध > ह - प्राकृत भाषा प्रबोधिनी नाथः - नाहो, मिथुनम् - मिहुणं । • साधु - साहू, बधिरः - बहिरो । भ > ह सभा - सहा, नभः - नहो । निम्नलिखित असंयुक्त व्यंजनों का निम्न रूप से परिवर्तन होता है

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