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2. मध्य व्यंजन परिवर्तन
क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् 1/177
क-ग-च-ज-त-द-प-य-व का प्रायः लुक् होता है, तथा
अवर्णो य-श्रुतिः 1 / 180
क, ग, च, ज आदि का लोप होने पर शेष अवर्ण (अ, आ, आ... ) यदि अवर्ण
से परे हो तो उसको यकार की श्रुति होती है । जैसे
क > का लुक् - लोकः - लो, शकट::-सयढो ।
> लुक्
नगरम् —–नयरं, नगः-नओ ।
> लुक् ज > लुक् - रजतं -रययं, गजः - गओ ।
> लुक्
लता -लया, वितानं -विआणं ।
द > लुक्
गदा - गया, यदि - जइ ।
प > लुक् – रिपुः–रिऊ, सुपुरुषः - सुउरिसो ।
य > लुक् - वियोगः - विओओ, वायुना - वाउणा ।
पो वः 2/231
प > व
-
ख> ह
-
स्वर से परे असंयुक्त और अनादि प को प्रायः व होता है ।
शपथः - सवहो, शापः - सावो ।
-
-
-
वचनम् - वयणं, काचमणिः - कायमणि ।
ख-घ-थ-ध-भाम् 1 / 187
स्वर से परे असंयुक्त अनादिभूत ख, घ, थ, ध और भ को प्रायः ह होता है । ख, घ, थ, ध, भ का ह होता है ।
साखा - साहा, मुखं - मुहं ।
छह - मेघः-पेहो, माघः - माहो ।
थ ह
ध > ह -
प्राकृत भाषा प्रबोधिनी
नाथः - नाहो, मिथुनम् - मिहुणं ।
• साधु - साहू, बधिरः - बहिरो ।
भ > ह
सभा - सहा, नभः - नहो ।
निम्नलिखित असंयुक्त व्यंजनों का निम्न रूप से परिवर्तन होता है