Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ 24 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी ही मिलते हैं। भिन्न वर्गीय संयुक्त व्यंजनों को समान वर्गीय व्यंजन के रूप में बदल दिया जाता है। उसके एक व्यंजन का लोप कर दूसरे को द्वित्व कर दिया जाता है। क-ग-ट-ड-त-द-प-श-ष-स क)(पामूर्ध्वं लुक् 2/77 क, ग, ट, ड, त, द, प, श, ष, स, जिह्वामूलीयक, उपध्मानीय)(प-ये संयोग में ऊर्ध्व स्थित हों तो इनका लोप हो जाता है। सर्वत्र लबरामवन्द्रे 2/79 ऊर्ध्व, अधः स्थित ल, ब, र का लोप हो जाता है, वन्द्र शब्द को छोड़कर। अधो म-न-याम् 2/78 संयोग के अन्त में स्थित म, न, य का लोप होता है। अनादौ शेषादेशयोर्दित्वम् 2/89 पद के अनादि में रहे हुए शेष और आदेश को द्वित्व होता है। द्वितीयतूर्ययोरुपरि पूर्वः 2/90 वर्ग के द्वितीय तथा चतुर्थ वर्ण को द्वित्व का प्रसंग आने पर द्वितीय वर्ण को वर्ग का प्रथम वर्ण तथा चतुर्थ वर्ण को वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है। यदि द्वित्त्व व्यंजन हकारयुक्त (महाप्राण) हो तो उसको द्वित्त्व कर उसके प्रथम रूप के हकार को हटा दिया जाता है तथा वर्ग का पहला और तीसरा वर्ण कर दिया जाता है, जैसे- दुग्धम्-दुद्धं, मूर्छा-मुच्छा, मूर्खः-मुक्खो। क्ष्मा-श्लाघा-रत्नेन्त्यव्यञ्जनात् 2/101 क्ष्मा, श्लाघा और रत्न में अन्त्यव्यंजन से पूर्व अ होता है। संयुक्त व्यंजनों में एक व्यंजन य, र, ल अनुस्वार या अनुनासिक हो तो उसे स्वरभक्ति के द्वारा अ, इ, ई, और उ में से किसी स्वर के द्वारा विभक्त कर सरल व्यंजन बना दिया जाता है, जैसे-रत्नम्-रयणं, गर्दा-गरिहा। समास में शेष या आदेश व्यंजन को विकल्प से द्वित्व होता है, इसलिए समस्त पदों में संयुक्त व्यंजन विकल्प से पाए जाते हैं, जैसे-देवत्थुई-देवथुई। क्षः खः क्वचित्तु छझौ 2/3 क्ष को ख होता है, कहीं-कहीं छकार और झकार भी हो जाता है। जैसे-क्ष को ख, यक्षः-जक्खो ।

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