Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ 15 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 5. प्राकृतशब्दानुशासन त्रिविक्रम 13वीं शताब्दी के वैयाकरण थे। उन्होंने प्राकृत सूत्रों के निर्माण के साथ स्वयं उनकी वृत्ति भी लिखी है। इसमें तीन अध्याय तथा प्रत्येक अध्याय में 4-4 पाद हैं। कुल सूत्र 1036 हैं। यद्यपि इस कृति में हेमचन्द्र का ही अनुसरण किया गया है, फिर भी इसमें जो अनेकार्थ शब्द दिये गये हैं, वह प्रकरण हेमचन्द्र की अपेक्षा विशिष्ट है। कुछ अनेकार्थक शब्द, जैसे-अमार-टापू, कछुआ। करोड-कौआ, नारियल, बैल आदि। इसकी एक विशेषता यह भी है कि हेमचन्द्र द्वारा कहे हुए अपभ्रंश उदाहरणों की संस्कृत छाया भी इन्होंने दी है। 6. प्राकृतकल्पतरु बंगाल निवासी श्रीराम शर्मा तर्कवागीश ने प्राकृत कल्पतरु नामक व्याकरण लिखा है। इनका समय 17वीं शताब्दी माना गया है। इस व्याकरण में तीन शाखाएं हैं। प्रथम शाखा में दस स्तबक, दूसरी में तीन तथा तीसरी शाखा में नागर और ब्राचड अपभ्रंश तथा पैशाची का विवेचन है। 7. प्राकृतरूपावतार सिंहराज ने त्रिविक्रम प्राकृतव्याकरण को कौमुदी के ढंग से 'प्राकृतरूपावतार' में तैयार किया है। इनका समय 15-16वीं शताब्दी है। संज्ञा और क्रियापदों की रूपावली के ज्ञान के लिए यह व्याकरण कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। 8. षड्भाषाचंद्रिका इसके रचनाकार लक्ष्मीधर हैं। इनका समय 16वीं शताब्दी है। त्रिविक्रम के ग्रंथ को सरल करने के लिए उन्होंने यह व्याख्या लिखी है। 9. प्राकृतचंद्रिका पं. शेषकृष्ण की प्राकृतचन्द्रिका श्लोकबद्ध प्राकृत व्याकरण है। इनका समय 16वीं शताब्दी है। इस ग्रंथ में नौ प्रकाश हैं। 10. प्राकृतमणिदीप शैव विद्वान अप्पयदीक्षित ने प्राकृतमणिदीप लिखा है। इनका समय भी 16वीं शताब्दी है। संक्षेप रुचि वाले पाठकों के लिए लिखे जाने के कारण यह ग्रंथ विस्तृत नहीं है। 11. प्राकृतसर्वस्व यह ग्रंथ प्राच्य शाखा के प्रसिद्ध प्राकृतवैयाकरण मार्कण्डेय का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88