Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ 14 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी प्राकृत व्याकरण ग्रंथ ढाई हजार वर्ष पुराना प्राकृत साहित्य आज उपलब्ध है। 'आयारो' प्राचीनतम आगम के रूप में स्वीकृत है। आचारांग, स्थानांग, अनुयोगद्वार आदि में वचन, लिंग, कारक, समास, तद्धित, धातु, निरुक्त आदि प्राकृत व्याकरण के अंगों का उल्लेख है, किन्तु कोई भी प्राचीन प्राकृत व्याकरण उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध प्राकृत व्याकरणों का कालक्रम इस प्रकार है1. प्राकृत लक्षण इसके रचयिता चंड हैं। इसका समय ई. 2-3 शताब्दी है। तीन पादों के 99 सूत्रों में प्राकृत व्याकरण का विवेचन किया गया है। इस ग्रंथ की अन्य चार प्रतियों में चतुर्थपाद भी मिलता है, जिसमें 4 सूत्र हैं। उपलब्ध प्राकृत व्याकरणों में यह सर्वप्राचीन है। 2. प्राकृतप्रकाश इसके कर्ता वररुचि हैं। प्राकृत वैयाकरणों में चंड के बाद वररुचि प्रमुख वैयाकरण हैं। इनका समय ई. 4-5 शताब्दी माना जाता है। प्राकृतप्रकाश में 12 परिच्छेद हैं। नौ परिच्छेद तक महाराष्ट्री प्राकृत, दसवें में पैशाची, ग्यार में भागधी और बारहवें में शौरसेनी के नियम हैं। 3. प्राकृतशब्दानुशासन पुरुषोत्तमदेवकृत प्राकृतशब्दानुशासन में तीन से लेकर बीस अध्याय हैं। इनका समय ई. 12वीं शताब्दी है। इसमें शाकारी, चांडाली, शाबरी और विभाषाओं का भी विवेचन है। 4. सिद्धहेमशब्दानुशासन __ प्राकृत व्याकरणशास्त्र को पूर्णता आचार्य हेमचन्द्र के सिद्धहेमशब्दानुशासन से प्राप्त हुई है। इस काल भी ई. 12वीं शताब्दी है। आचार्य हेमचन्द्र ने विभिन्न विषयों पर अनेक ग्रंथ लेखे हैं। इनकी विद्वत्ता की छाप इनके इस व्याकरण ग्रंथ पर भी है। इस ग्रंथ के हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी अनुवाद भी निकल चुके हैं। इसके आठ अध्याय हैं। प्रथम सात अध्यायों में संस्कृत व्याकरण का अनुशासन तथा आठवें में प्राकृत व्याकरण का निरूपण है। आठवें अध्याय में चार पादों में कुल 1119 सूत्र हैं। चतुर्थ पाद में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश प्राकृतों का शब्दानुशासन ग्रंथकार ने किया है तथा धात्वादेश की प्रमुखता है। इस ग्रंथ का यह वैशिष्ट्य है कि प्राचीन वैयाकरणों के ग्रंथों का उपयोग करते हुए भी अपने व्याकरण में बहुत-सी बातें नई और विशिष्ट शैली में प्रस्तुत की हैं।

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