Book Title: Prakrit Bhasha Prabodhini
Author(s): Sangitpragnashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी 11 साथ हुआ । इसीलिए पालि, अर्धमागधी आदि प्राकृतों के विकास में मागधी प्राकृत को मूल माना जाता है। इसमें कई लोक भाषाओं का समावेश था। मागधी का प्रयोग अशोक के शिलालेखों में हुआ है और नाटककारों ने अपने नाटकों में इसका प्रयोग किया है, किन्तु इसका कोई स्वतंत्र ग्रन्थ प्राप्त नहीं हुआ है। (ग) पैशाची प्राकृत देश के उत्तर-पश्चिम प्रान्तों के कुछ भाग को पैशाच देश कहा जाता था । वहाँ पर विकसित इस जनभाषा को पैशाची प्राकृत कहा गया है । यद्यपि इसका कोई एक स्थान नहीं है। विभिन्न स्थानों के लोग इस भाषा को बोलते थे । प्राकृत भाषा से समानता होने के कारण पैशाची को भी प्राकृत का एक भेद मान लिया गया है । इस भाषा में बृहत्कथा नामक ग्रन्थ लिखे जाने का उल्लेख है, किन्तु वह मूल रूप में प्राप्त नहीं है। उसके रूपान्तर प्राप्त हैं, जिनसे मूल ग्रन्थ का महत्त्व सिद्ध होता है । इस प्रकार मध्ययुग में प्राकृत भाषा का जितना अधिक विकास हुआ, उतनी ही उसमें विविधता आयी, किन्तु साहित्य में प्रयोग बढ़ जाने के कारण विभिन्न प्राकृतें महाराष्ट्री प्राकृत के रूप में “एकरूपता को ग्रहण करने लगीं ।" प्राकृत के वैयाकरणों ने साहित्य के प्रयोगों के आधार पर महाराष्ट्री प्राकृत के व्याकरण के कुछ नियम निश्चित कर दिये। उन्हीं के अनुसार कवियों ने अपने ग्रन्थों में महाराष्ट्री प्राकृत का प्रयोग किया । इससे प्राकृत भाषा में स्थिरता तो आयी, किन्तु उसका जन-जीवन से सम्बन्ध दिनों दिन घटता चला गया। वह साहित्य की भाषा बनकर रह गयी । अतः जनबोली का स्वरूप उसे कुछ भिन्नता लिए हुए प्रचलित होने लगा, जिसे भाषाविदों ने अपभ्रंश भाषा नाम दिया है । एक तरह से प्राकृत ने लगभग 6-7वीं शताब्दी में अपना जनभाषा अथवा मातृभाषा का स्वरूप अपभ्रंश को सौंप दिया। यहाँ से प्राकृत भाषा के विकास की तीसरी अवस्था प्रारम्भ हुई। अपभ्रंश युग ( आधुनिक युग ) प्राकृत एवं अपभ्रंश प्राकृत एवं अपभ्रंश इन दोनों भाषाओं का क्षेत्र प्रायः एक जैसा था तथा इनमें साहित्य-लेखन की धारा भी समान थी । विकास की दृष्टि से भी दोनों भाषाएँ जनबोलियों से विकसित हुई हैं। व्याकरण की भी बहुत कुछ इनमें समानता है, किन्तु इस सबसे प्राकृत और अपभ्रंश को एक नहीं माना जा सकता। दोनों ही स्वतंत्र भाषाएं हैं। दोनों की अपनी अलग पहचान है । प्राकृत में सरलता की दृष्टि से जो बाधा रह गयी थी, उसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88