Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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+ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स
श्रीमदार्यश्यामाचार्य विरचित
प्रज्ञापना सूत्र
(मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ और विवेचन सहित)
भाग - ४ ___ बावीसइमं किरियापयं
बाईसवाँ क्रियापद प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवें पद में गति के परिणाम रूप शरीर की अवगाहना आदि का विचार किया गया है। अब इस बाईसवें पद में नरक आदि गति परिणाम रूप परिणा हुई जीवों की प्राणातिपात आदि स्वरूप वाली क्रियाओं का विचार किया जाता है। जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
क्रिया भेद-प्रभेद करणं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ? - गोयमा! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ। तं जहा-काइया १, अहिंगरणिया २, पाओसिया ३, पारियावणिया ४, पाणाइवायकिरिया ५।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्रियाएं कितनी कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! क्रियाएँ पांच कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - १. कायिकी २. आधिकरणिकी ३. प्रांद्वेषिकी ४. पारितापनिकी और ५. प्राणातिपात क्रिया। . विवेचन - कर्मबंध के कारण भूत जीव की चेष्टा-प्रवृत्ति को क्रिया कहते हैं। जो कायिकी आदि पांच प्रकार की कही गई है।
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