Book Title: Niyamsar Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan View full book textPage 8
________________ 1 I इस प्रकार मैंने भक्तिराग से द्वादशांगरूप श्रेष्ठ का स्तवन किया है। जिनवर वृषभदेव, मुझे मीघ्र ही श्रुत का लाभ देवें । मी कुंदकुददेव ने किसी भी ग्रन्थ के अंत में अपना नाम नहीं दिया । ऐसा एकांत नहीं है उन्होंने "वारसणुपेक्खा " ग्रन्थ के अंत में अपना नाम दिया है । यथा १३ एवं मए सुबरा मतीराएण संतबुवा तथा । सिग्यं मे सुबलाहं जिनवरखसहा पयच्छंतु ॥११॥ इस प्रकार श्री कुंकुमुनिनाथ ने निश्चय और व्यवहार का प्रवलंबन लेकर जो कहा है, शुद्ध हृदय होकर जो उसकी भावना करता है वह परम निर्वाण को प्राप्त होता है । गाया ४९ इषि निद्रयववहारं जं भणियं कुं वकुदमुजिणाहे । जो भाव सुद्धमणो सो पावइ परमणिष्वाणं ॥ ९१ ॥ नय व्यवस्था : यह नियमसार मुनियों के चारिका ग्रन्थ है। उस नारित्र में भी वीतराग चारित्र का ही प्रमुख वन है। इसमें चौथे अधिकार में पांच महाव्रत पान समिति मोर तीन गुप्सि, इन तरह विचार को कहा है। महाव्रत और समिति तो व्यवहारचारित्र ही है। हां, गुप्तियों में प्राचार्यदेव ने व्यवहार निश्चय दो भेद कर दिये हैं। व्यवहार गुप्तियां शुभ प्रवृत्ति होते हुए भी प्रणुम से निवृत्ति रूप हैं ये पंचम काल में संभव हैं और प्राचार्य परमेष्ठी के ३६ गुणों में भी हैं । निश्चयगुप्तियां शुभ-शुभ दोनों की निवृतिरूप होने से त्रिगुप्तिगुप्त महामुनियों के ही संभव हैं जो कि माज नहीं हो सकती । मं I I इस ग्रन्थ में व्यवहार निश्चय काय करते हुये दोनों के विषय को कहने वाली दस गाथायें हैं, उनके कुछ उदाहरण देखिये- कट्टा है- प्रकृति स्थिति धाता श्रवशमिक प्रा भी भाव व्यवहारनय से जोव के कई है नियत से या शुद्धनय से संसार में भी जीव सिद्धस्वभाव वाले है गाथा ७६ में कहा है- पांच महाव्रत प्रादि तथा पंच परमेष्ठी को भक्तिमादि भावना से व्यवहारचारित्र होता है धीर अब मैं इसके धागे निश्चयगय के नानि को कहूंगा इस कथन से यह नया स्पष्ट है कि व्यवहार के चारित्र को धारण करते हैं. दाही निश्वय चाश्यि प्राप्त होता है के बिना भी निश्चय कुछ लोग चारित्र मान लेते है उन्हें इस ७६ गाथा पर लक्ष्य देना नाहिये । गाथा १५६ में केवली भगवान् में दोनों नयों को विवक्षा करते हैं श्री कुरंदकुददेव कहते हैं-व्यवहारलय मे केवली भगवान् गर्व जगत् को जानते हैं और से अपनी पात्मा को ही जानते देखते हैं । इस कथनPage Navigation
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