Book Title: Nandanvan Kalpataru 2008 00 SrNo 21
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 11
________________ जितनी श्रीमशास्लुहरकेशमायाamare भीमभयम्य मामघरगुकास्यप मोतियानपिधिप्रणेता अदभुगना " गिरोस् । विहाय नेम्युदयाहाकाव्यम् ।। चरितार .. मन:प्रथमः।। मालाचरण समरिन सिन्ति लक्ष्मस्थिकण विलम्बालभासा यो पातयन्त्रबदलावितकमा मिनिलंबनाmaudiar तमासमा मादविभुमार प्रागल्यमोनुमतले स्वयमेव शानिये शान्तक ममानविशुधमनिम् ॥ गतिंतनोतुलनासतिनोनुनलाय यस्याशिधानमपिशानिया प्रशिद्धम्।। योमारनेमि गमनाइलनकहे त्याचा विवाहसमा प्रशस्सनेनिन्। भताभयनरमनन्यतयेरमानेकुबोधमिरातबारा 30. मोनित्यमर्चित शामरनाथवाः य-सामविपुलकीर्तिमलिपार्थः ।। राश्वहिलामातनिधासवनाशपाय भगा-nnाग-लोपा राम्यागोस्वचलमि६रयांकान्या शरा-मजयन रिमाधिपा। यःशवारकमनोगतमंशयापनमामिहनामनिस्तावित तीश्वरानपिनमाम्यपरानामांस्तान मेयरमा गुणविसारस्तानः॥ नायतमामुहितार्तिनिपीडताना रनारकाशिनताद रोतमा.... साक्षात्प्रमोस्न पुरस्य पदार्यशोमतदमापुरमित गमयोयाले । मेतामानिभनिकामरान श्रीगौतमादिगमगायकवरिया। काकी सगा औभारतीयधपू यसमाजमली। मामानिनेकवचनोल्ससदात्मभामोत्पादमिति प्रलयता नीशा तेसोनियाजगो . ....... सत्त्वंपविघ्नपरलीवितायेगे मेरमानित गतिक पलभाति॥ सानामितोगुणगणःस्वभावदोषामं पूनागत्यपदभोगतेसमस्तः।। सरीनमानिनितवाभाविधानडेकान्तिमिसंगसुनितशिलगमज्ञान पोन्यायदीयवचनामृतमधाच्या भयो भवन्ति भावना यह कामम्। ' शतांशुहीममलयाचसोम्मकाति नौमीहरधिधितयं गुरुगन्निबुद्धिम् १॥ विजयनेम्यभ्युदयमहाकाव्यस्य रचयितृभिः श्रीविजयोदयसूरीश्वरैः प्रथमालेख्यतया स्वयं लिखितस्य पत्रस्य प्रतिकृतिरियम्। शासनसम्राड्-विशेषः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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