________________ 12 भूमिका प्रवेशकर उसने ब्राह्मणको सस्पपूर्वक दान दे दिया, किन्तु इतमाग्य उस ब्राह्मगने 'तुम्हें विकारहै, जो मुझ ब्राह्मणको गङ्गातटपर बुलाकर दानमें पत्थर दे रहे हो ऐसा कहकर उस अमूल्य पत्थरको गङ्गाजी में फेंक दिया और घर चला गया। इधर मन्त्रीने गङ्गाजीमें डूबकर प्राणत्याग कर दिया। उधर तक्षशिलाधीश्वर 'सुरत्राण' ने काशी पहुँचकर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया एवं यवनोंने नगरीको खूब लूटा। राजा मारा गया या उसका क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला। यह ईसवोय सन् 1348 में राजशेखरसूरिरचित प्रबन्धकोषमें 'श्रीहर्ष-विद्याधरजयन्तचन्द्रप्रबन्ध से शात होता है। जयन्तचन्द्रका समयप्राचीन लेखमालाके 23 वे लेखके संवत् 1243 (ईसवीय सन् 1983 ) आषाढ़ शुक्ल सप्तमी रविवारको लिखित दानपत्रसे जयन्तचन्द्रका वंशक्रम इस प्रकार शात होता है यशोविग्रह महीचन्द्र श्रीचन्द्रदेव मदनपाल गोविन्दचन्द्र विजयचन्द्र जयन्तचन्द्र इनमें यशोविग्रहके पौत्र 'श्रीचन्द्रदेव' ने कान्यकुब्ज (कन्नौज ) तथा काशीपर विजय प्राप्त की थी, तथा 22 वे लेख में जयन्तचन्द्र के यौवराज्यदानपात्र में संवत् 1225 ( ईसवीय सन् 1169 ) लिखा है। इस प्रकार जयनचन्द्र के राज्यकालके अनुसार महाकवि श्रीहर्षका समय भी बारहवीं शताब्दी ही निश्चित होता है / अत एव जयन्तचन्द्र के पिता विजयचन्द्र के वर्णनस्वरूप ग्रन्थकी चर्चा श्रीहर्ष कविने अपने नैषधचरितमें की है। श्रीहर्षके समयके विषयमें विविध मतोंमें उपस्थित विसंवादों का प्रदर्शन कर उनका खण्डन करते हुए डाक्टर बूलर साहद के उस व्याख्यानसे भी इसीका समर्थन होता है, जो 'रायल एशियाटिक सोसायटी, बम्बई ब्रांच' ( Royal Asiatic Society, Bombay Branch ) नामको विदत्समाद्वारा सन् 1875 ई० में प्रकाशित प्रबोधनग्रन्थ मुद्रित हुआ है। 1. तस्य श्रीविजयप्रशस्तिरचनातातस्य भव्ये महा. काव्य चारुणि नैषधीयचरिते सर्गोऽगमपञ्चमः / (5 / 138 का उत्तरार्द्ध)