Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 7
________________ चरित्र ॥३॥ पुरातनमुनिप्रोक्तं, पुण्यं पुण्यार्थिनां प्रियम् । नाभाकचरितं चित्री-यते केषां न चेतसि ? ॥५॥ भावार्थ-प्राचीन महर्षिोए कहेलं, अने पुण्यना अर्थी भव्य प्राणीओने अतीव प्रियकर एवं श्रीनाभाक- राजानुं पवित्र चरित्र कोना चित्तमां आश्चर्य नथी करतुं १ अर्थात् पवित्र महापुरुष श्रीनामाकराजानुं चरित्र असाधारण भने निर्दोष होवाथी दरेक पुरुषोना चित्तने विषे आश्चर्य उत्पन्न करनारुं छे. ॥५॥ हवे ग्रन्थकार चरित्रनो आरंभ करे छतथाहि- जम्बूद्वीपाभिधे दीपे, क्षेत्रे भरतनामके । श्रीपार्श्वनाथश्रीनेमिनाथयोरन्तरेऽभवत् ॥ ६ ॥ अनेकश्रीपतिब्रह्म-जिष्णुश्रीविभूषितम् । क्षितिप्रतिष्ठितं नाम, पुरं स्वपुरजित्वरम् ॥ ७॥ भावार्थ-जंबूद्वीप नामना दीपने विष भरतक्षेत्रमा श्रीपार्श्वनाथ अने श्रीनेमिनार्थ जिनेश्वरने आंतरे क्षितिप्रतिष्ठित नामर्नु नगर हतुं, जे नगर अनेक श्रीपति, अनेक ब्रह्म, अनेक जिष्णु, अने अनेक श्रीद वडे शोभायमान होवाथी तेणे स्वर्गपुरने पण जीती लीधु इतुं ।

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