Book Title: Nabhakraj Charitram Author(s): Merutungsuri, Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand View full book textPage 6
________________ - श्रीवीरेजिनमानम्य, सम्यग् नाभाकभूपतेः । देवद्रव्याधिकारेऽद-श्चरितं कीर्तयिष्यते ॥२॥ भावार्थ-प्रभु श्रीमहावीरने सम्यक् प्रकारे नमस्कार करीने, देवद्रव्यना अधिकार उपर भीनाभाक-|| राजानुं चरित्र कही ॥२॥ श्रीनामाकनरेन्द्रस्य, कथा श्रुतिपथागती। चरित्र विधेव जांगुली लोभ-विषं हन्ति विवेकिनाम् ॥ ३॥ 1॥२॥ भावार्थ-नेम जांगुली मंत्र सर्पना विषनो. विनाश करेछे-जांगुली मंत्रथी सर्पनुं विष उतरी जाय छे, तेम श्रवणपथमा आवेली देवद्रव्य 'परत्वेनी आ नामाकनरेन्द्रनी कथा विवेकी पुरुषोना लोभरूपी विषनो विनाश करेछे. ॥३॥ श्रीनाभाकनृपाख्यान-पानप्रीतमनाः पुमान् । ___ सदा सन्तोषसंतुष्टः, सर्वसम्पत्तिभाग भवेत् ॥ ४॥ ___भावार्थ-जे पुरुष श्रीनाभाकराजानी कथानुं पान करवामां हर्षित चित्तवाळो छे, ते निरंतर संतोष बडे || संतुष्ट थइ सर्व प्रकारनी समृद्धिने भजवावाळो थाय छे-ते पुरुषने सर्व प्रकारनी समृद्धि अनायासे प्राप्त थाय छे. ॥४॥ ||Page Navigation
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