Book Title: Na Cha Ratnamalika
Author(s): Sastra Sharma, Surati Narayanmani Tripathi
Publisher: Varanaseya Sanskrit Vishvavidyalay
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मङ्गलश्लोकः
लक्षणस्थयत्समानाधिकरणपदविवरणम्
अस्यैव विवरणान्तरम् यत्समानाधिकरणपदस्य त्रयो विकल्पाः कल्पत्रयेऽपि दोषोद्भावनम् यत्समानाधिकरणपदस्याभिमतोऽर्थः निरूपकत्वनिरूपितत्वयोर्द्विप्रकारकत्वम्
नूतनालोकटीका तत्प्रकाशटिप्पण्योपबृंहिताया नचरत्नमालिकायाः कतिपयप्रधानविषयाणां सूचीपत्रम्
न च रत्नमालिका
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सामान्यधर्मावच्छिन्नाधारत्वाधेयत्वयोरतिरिक्तत्वव्यवस्थापनं व्युत्पत्तिवादोक्तम्
त्वधिकरणपदार्थस्य त्रयो विकल्पाः
स्वरूपसम्बन्धो भावाभावसाधारणः व्यधिकरणधर्मावच्छिन्नप्रतियोगिताया अपि सम्बन्धावच्छिन्नत्वम् लक्षणस्थप्रमापदेन नानाविधानां समूहालम्बनासमूहालम्बनज्ञानानां समुल्लेखः
तत्रोपयुक्तानां प्रमाज्ञानानामनुगमः
समानाकारकत्वविचारः
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विविध सामग्रीघटकतया साध्याभावप्रमामादाय दोषोद्भावनम्
तत्रैव सामग्रीस्वरूप चिन्तनम्
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तद्वत्ताबुद्धेर्न तदभाववत्तानिश्वयत्वेन प्रतिबन्धकत्वम्
किन्तु सामानाधिकरण्यसम्बन्धेन बाधनिश्वयविशिष्टत्वेनैवेति मतम् एतन्मते प्रतिबन्धकताघटितं लक्षणम्
प्रतिबध्यतायाः प्रतिवध्य स्वरूपत्वमाक्षिप्यासम्भवप्रक्रमः
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एकदेशान्वयविचारः
धर्मिपारतन्त्र्येण भानस्य स्वरूपनिर्वचनम् ज्ञाननिष्ठसमानाकारकत्वस्य पचभेदानुपक्षिण्यानुगमनेन निर्वचनम्
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संशयोत्तरप्रत्यक्षं प्रति विशेषदर्शनस्य हेतुत्वमुत्तेजकत्वं वा नावश्यकम् उभयाभावमादायातिव्याप्तिवारणस्य दुर्घटत्वं प्रत्येकापर्यातधर्मस्य समुदायपर्याप्तत्वनियमा
तद्दोषस्य तादवस्थ्यम्
नूतनालोकः
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