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महावीर का पुनर्जन्म
महल में कैद भी नहीं कर सकता। वह प्रभु है हमारी उपयोग चेतना। जिसकी चेतना निरंतर जागती है, उपयोग निरन्तर जागता रहता है, वह पूर्ण स्वतंत्र है। उसे कोई परतन्त्र नहीं बना सकता। उसके लिए छन्द का उपदेश ही नहीं है। छन्द-निरोध का उपदेश उस व्यक्ति के लिए है जो क्षण भर में क्रोध कर लेता है, क्षण भर में आवेश में चला जाता है, क्षण भर में हीनता या अंहकार की भावना में चला जाता है और कभी लोकवाद में चला जाता है। उसके लिए कहा गया-'छन्दं निरोहेण उवेइ मोक्खं'-छन्द का निरोध करो, मोक्ष मिलेगा। मोक्ष का अर्थ है पूरी स्वतंत्रता। जरूरी है स्वतन्त्र होने की अर्हता
___ सुजानगढ़ में कालूगणी का चातुर्मास था। हजारीमलजी रामपुरिया की हवेली के ऊपर वाले कमरे में मुनि तुलसी के पास मैं और मेरे साथी विद्यार्थी मुनि पढ़ रहे थे। मुनि तुलसी ने कहा--देखो! अभी तुम बातें मत करो। बात पर पाबन्दी लगा दी गई। कोई भाई दर्शन-वन्दना करने आता तो भी पाबन्दी रहती। हमें यह निर्देश कड़ा और अप्रिय लगता। मुनि तुलसी ने एक दिन कहा-देखो! मैं तुम्हें मना कर रहा हूं पर किसलिए? अभी तुम छोटे हो इसलिए खूब अध्ययन करो फिर तुम एकदम स्वतंत्र बन जाओगे, तुम्हें कोई टोकने वाला नहीं मिलेगा। अगर अभी बातों में गए, अध्ययन नहीं किया, पढ़ाई नहीं की तो जीवन भर तुम्हारे सिर पर कोई न कोई ठोला देना वाला रहेगा। मुनि तुलसी के कथन का रहस्य था-अभी छन्द का निरोध करो, स्वच्छन्दता का निरोध करो, स्वतंत्र बन जाओगे। अभी छन्द का निरोध नहीं किया तो जीवन भर परतंत्र बने रहो
__छन्द-निरोध के अर्थ को सम्यक् समझना जरूरी है. स्वतन्त्रता की सीमा का सही बोध आवश्यक है। स्वतंत्रता की अर्हता पाए बिना स्वतंत्र बनने का प्रयत्न जीवन के विकास में बाधक बन जाता है। स्वतंत्र होने की योग्यता पाए बिना स्वतंत्र होने का अर्थ है-परतन्त्रता को निमंत्रण देना। स्वतंत्रता की अर्हता को पाने वाला ही स्वतंत्रता का भार उठा सकता है। छंद-निरोध का उपाय : दीर्घश्वास प्रेक्षा
एक आदमी ने संकल्प किया-मैं सांड को अपने हाथों से उठाऊंगा। बड़ा कठोर संकल्प था। उसने उस दिन से एक बछड़े को उठाना शुरू किया। रोज उठाता चला गया। वह बछड़ा एक दिन सांड बन गया और उसने सांड को भी सहजता से उठा लिया।
निरन्तर अभ्यास के द्वारा यह संभव बन सका। बहुत कठिन है वासनात्मक छन्द का निरोध करना। अभ्यास के बिना इसका निरोध संभव नहीं है। दीर्घश्वास का अभ्यास छन्द-निरोध का सशक्त माध्यम है। एक व्यक्ति ने पहले दिन पांच मिनट दीर्घश्वास का प्रयोग किया, दूसरे दिन छह मिनट दीर्घश्वास का प्रयोग किया, तीसरे दिन सात मिनट दीर्घश्वास का प्रयोग किया। इस प्रकार जैसे-जैसे दीर्घश्वास का प्रयोग बढ़ता चला जाएगा, छन्द का निरोध होता चला जाएगा। दीर्घश्वास नियंत्रण करने वाला है। उसमें आश्चर्यकारक नियामक शक्ति
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