Book Title: Mahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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ग्वालियर-दुर्ग के कुछ जैनमूर्ति-निर्माता एवं महाकवि रइधू : ५५ कमलसिंहको सम्मान स्वरूप अपने हाथसे पानका बीड़ा दिया। कमलसिंह भी प्रसन्नतापूर्वक वापिस अपने घर आया और दूसरे ही दिन प्रतिष्ठा समारोहका कार्य प्रारम्भ कर दिया।
उक्त विशाल मूर्ति के प्रतिष्ठा-कार्यको सम्पन्न करनेवाले थे महाकवि तथा प्रतिष्ठाचार्य रइध। इस मूर्ति पर उत्कीर्ण अभिलेखसे भी इसका समर्थन होता है कि मूर्तिनिर्माता कमलसिंह था तथा प्रतिष्ठाचार्य थे रइधू । अन्तर इतना ही है कि मूर्तिलेखमें कमलसिंहके नामके स्थान पर 'काला' शब्द पढ़ा गया। किन्तु उसमें या तो लेखवाचकको कुछ भ्रम हुआ है अथवा प्रतीत होता है कि शीत, गर्मी एवं बरसात के मौसमी प्रभावने बीच-बीचमें अभिलेखको प्रभावित करके ही 'कमलसिंह'को 'काला' बना दिया है। वस्तुतः वह 'काला' नहीं 'कमलसिंह' ही है, क्योंकि रइधकृत 'सम्मत्तगुण णिहाणकत्व'की प्रशस्तिमें उल्लिखित कमलसिंहकी वंशावली तथा लेखकी वंशावली आदि सभी सदृश हैं।
दूसरा मूर्ति-निर्माता था खेल्हा ब्रह्मचारी, जो हिसारका निवासी था तथा जिसका विवाह कुरुक्षेत्रके निवासी सहजा साहूकी पौत्री एवं तेजा साहूकी पुत्री क्षेमी के साथ हुआ था। सन्तान-लाम न होनेसे इन्होंने अपने भतीजे हेमाको गृहस्थीका भार सौंपकर ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था तथा उसी स्थितिमें उन्होंने ग्वालियर-दुर्गमें चन्द्रप्रभ भगवानकी मूर्तिका निर्माण तथा कमलसिंहके सहयोगसे शिखरबन्द मन्दिरका निर्माण और साथ ही मूर्तिप्रतिष्ठाका कार्य सम्पन्न कराया था। रइधूने लिखा है :
तुम्हह पसाएण भवदुहकयंतस्स । ससिपहजिणेदस्स पडिमा विसुद्धस्स ॥ काराविया मई जि गोवायले तुंग । उडुचावि णामेण तित्थम्मि सुहसंग ॥ आजाहिया हाण महु जणाण सुपवित्त । जिणदेव मुणिपाय गंधोव सिरसित्त ॥ दुल्लंभु णरजम्मु महु जाइ इहु दिण्णु । संगहिवि जिणदिक्ख मयणारि जिं छिपणु ॥ तहिं पढिय उवयारं कारणेन जिणसुत्ति । काराविया ताहि सुणिमित्त ससिदित्ति ॥ कलिकालु जिणधम्म धुर धार पूढस्स । तिजयालये सिहरि जस सुज्झ रूढस्स ।। सिरि कमलसिंहस्स संघाहिवस्सेव । सुसहायएणावि तं सिद्ध इह देव ॥
___ (सम्मइ० १।४।११-१९) ग्वालियर-दुर्गका तीसरा मूर्ति-निर्माता है असपति साहू, जिसका पिता तोमरवंशी राजा डूंगरसिंहका सम्भवतः खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री (Food and Civil Supply Minister) था। चार भाइयोम यह मंझला भाई था। चतुर्विध संघका भारवहन करनेसे इसने “संघपति" की उपाधि प्राप्त की थी। विद्यारसिक, धर्मनिष्ठ एवं समाजका प्रधान होने के साथ-साथ वह कुशल राजनीतिज्ञ भी था। प्रतीत होता है कि वह भी समकालीन राजा कीर्तिसिंहका दीवान, सुरक्षामन्त्री अथवा प्रधान सलाहकार था। इसने श्रद्धावश अनेक जैनमूर्तियों एवं मन्दिरोंका निर्माण एवं उनकी प्रतिष्ठाएं कराई थीं। रइधूने कहा है :
वीयउ पुणु परउवयारलीणु । जिगगुणपरिणय उद्धरियदीणु ॥ जिणि काराविउ जिणुहरु ससेउ । धयवड पतिहिं रहसूरतेउ ॥
१ जैन शिलालेख संग्रह तृतीय भाग, (माणिक. सीरीज, बम्बई, वि० सं० २०१३) लेखांक ६३३ । २ सम्मत्तगुणणिहाणकव्व ४।३५ । ३ सम्मइनिणचरिउ १०।३४।१७-३४ ।
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