Book Title: Mahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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६४ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
आग्या माफक चालसी पिण इतरो विचार तो आपने इचाइजै मोटो खेत्र तुरत लिखते तुरत दीज नीराट हलको खेत्र नहीं लिखणो सुं आप विचार सु खरी। सिंघ रै भी तो सला बैठे जीण नै सैर लिखो, सला बैठे जिण नै छोटो गांव लिखो श्रीजी रा जती है, सींघ रै इण वेदी में कांई परोजन नहीं। सिंघ. तो श्रीजी रै आग्या परवाण छ नै श्रीजी लिखे मारी आज्ञा सींध थकी चालसी सुतो दुरस पिण श्रीजी पटो चोमासा रैटाणै नैड़ा दिनां में मेलो नै पछै पटो मारग में देखाय राखै सु आदेसी अलगी दूर सुं आवै सुं कद समाचार पूंगे नै कद आदरा पैली आवै सु मरजाद तो राखणी आपरै ही ज हाथ बात छै सु विचार लेसी। वाहड़ता कागद क्रीपा करनै दीरावसी, देव दरसण अवसरै सींघनै याद करावसी। सं० १८६७ रा मिगसर सुदि ५ दी को। सिवचंद रा छै सींघ रे कहासुं लिखो छै। ___अंतमें अन्मुठिओमिका पाठ लिखकर विज्ञाप्तिपत्र पूर्ण किया गया हैं।
नित्य विनय मणि जीवन जैन लायब्रेरी, कलकत्ता
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