Book Title: Mahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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पारसनाथ किला के जैन अवशेष : ८३
से०५-यमुना सहित द्वार-स्तम्भ-इस स्तम्भ पर नीचेके भागमें अपने वाहन कच्छप पर आरूढ़ यमुना दिखाई गई हैं। इनके साथ भी उसी प्रकार परिचारिकायें प्रदर्शित हैं जैसी कि पहले द्वारस्तम्भ पर। इससे पता चलता हैं कि ये दोनों खम्भे एक ही द्वार पर लगे हुए थे। द्वार-खंभोंके ऊपर गंगा-यमुनाका चित्रण गुप्तकालके प्रारम्भसे मिलने लगता है। गुप्तकालके महाकवि कालिदासने दर्वाजे पर लगी हुई देवी रुपा गंगा-यमुनाकी मूर्तियोंका उल्लेख इस प्रकार किया है :
"मूर्ते च गंगा यमुने तदानीं सचामरे देवमसेविषाताम्।” (कुमारसंभव ७,४२)
(अर्थात् उस समय मूर्त रूपमें गंगा और यमुना हाथोंमें चँवर लिये हुए देवकी सेवामें उपस्थित थीं)।
से० ६-द्वारपाल सहित द्वार-स्तम्भ-इस खम्भे में नीचे एक मोटा दंड लिये द्वारपाल खडा है। उसकी लंबी दाढी तथा बालोंका जूड़ा दर्शनीय है। इसका ढंग उसी प्रकारका है जैसा कि मध्यकालीन चंदेल कलामें मिलता है। इस खंभेके ऊपरी भागमें फूलोंका अलंकरण दिखाया
गया है।
सं०७-द्वार-स्तम्भका निचला भाग-इस खंभेका केवल नीचेका हिस्सा बचा है, जिस पर पूर्वोक्त ढंगका एक द्वारपाल खड़ा है। इसकी भी वेशभूषा पहले के द्वारपाल-जैसी है। - सं०८-भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति--यह मूर्ति बढ़ापुर गांव से आई थी। यह तारसनाथ किलासे ही वहाँ किसी समय गई होगी। दुर्भाग्यसे इसका मुंह, हाथ तथा पैरोंका भाग तोड़ डाला गया है। यह मूर्ति काफी विशाल है। भगवान् ध्यानमुद्रामें सिंहासनके ऊपर बैठे हुए हैं। आसन पर सर्पकी ऐंडदार कुण्डलियां दिखाई गई हैं और सिरके ऊपर फणका घटाटोप है। अगल-बगल नाग और नागिनकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। उनके ऊपर ध्यानमुद्रामें तीर्थकर-युग्मकी प्रतिमाएं है। चरण-चौकी के ऊपर दो अलंकृत सिंह दिखाये गए हैं। यह मूर्ति भगवान् महावीरकी पूर्वोक्त प्रतिमाकी तरह बड़ी कलापूर्ण है। संभवतः मध्यकालमें पारसनाथ किलाकी भूमि पर निर्मित मुख्य मंदिरकी यह मूर्ति थी।
पारसनाथ किले के कितने ही प्राचीन अवशेष इधर-उधर पहुंच गए हैं। मुझे नगीनाके जैन मंदिरमें कई प्राचीन मूर्तियां देखनेके मिलीं, जिनकी शिल्प-रचना पारसनाथकी ही कलाके अनुरूप है। इन मूर्तियोंमें ध्यानमुद्रामें बैठे हुए तीर्थकरकी एक मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। स्तम्भका एक भाग भी यहां सुरक्षित है जिस पर खड्गासनमें भगवान तीर्थकर दिखाये गये हैं। इन सभी प्राचीन अवशेषोंको सुरक्षित रखना आवश्यक है। मध्यकालमें उत्तर भारतमें जैन धर्मका जो विकास हुआ उसे जानने में ये कलाकृतियाँ तथा अभिलेख सहायक सिद्ध हुए हैं ।
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