Book Title: Mahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
मेड़तासे विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ६१
नव ते आत्म प्रबोधथी, थास्यै कर्मनै रंगै जी। तुम मुखना उपदेशनी, चाहां तुमनै संगे जी॥ स०॥ ११ ॥ वीनतडी अवधारजो, साची प्रीत संभाली रे। कवर पदाना बोलडा, ते बोलडा प्रतिपाली रे॥ स०॥ १२॥ मेडता नगर पधारिये, चौमासो ठावीजे रे। श्रीसंघनै बहु हूंस छे, ते पूरव्यां मन रीझै रे। स० ॥ १३ ॥ विक्रम में कांइ मोहिया, रोगीलो ते देसो रे । कपटी गुज्जर में कहा, ओछा तेहना वेसो रे ।। स०॥१४॥ ढीला बोला काबरा, क्यां क्यां स्युं स्युं बोले रे। लूला पंगुला सूगटा, त्यां सुं चित्त अमोल रे । स०॥ १५॥ पिण ते कामणगारडा, कामण कीधा केई रे। त्यां सुं मनडो भेदीयो, जाणो मनमा थेई रे । स०॥१६॥ मै पिण कामण सीखस्यां, करस्यां कोड उपायो रे। गच्छपति राय नै वांदस्यां, सेवस्यां महनिस पायो रे। स०॥१७॥ छावा धर्मसुरिंदना, मात गुमानां जाया रे।। हरचंद कुल में केसरी, गच्छपति सहु मन भाया रे ॥स०॥१८॥ संवत अठारै सतसरी, कार्तिक मास सुहाया रे। सुदि तेरस भ्रगुवारनै, गच्छपतिना गुण गाया रे । स० ॥ १९॥ पंडित मांहे शिरोमणी, गुलालविजय गुरुराया रे। दीपविजयनी वीनती, लुलि लुलि लागै पाया रे । स०॥२०॥
इतिश्री वीनती संपूर्णमगमत् । लिखितोयं ।। श्री ॥१॥
ढाल-लुंझुनै वरसलो मेह-ए देसी श्री श्री जिनेन्द्रसुरिंद, गावो भवियण भाव सुं हो लाल । तारक भविजन एह, आचारज गुण डाव सुं हो लाल ॥१॥ कहिता २ नावै पार, वीर पटोघर मनोहरू हो लाल । पग पग होत कल्याण, इहभव परभव सुखकर हो लाल ॥२॥ राय प्रदेशी महन्त, राय पसेगी सूत्र में हो लाल । ध्येय माचारज जाण, घ्यायो मन धर मंत्र में हो लाल। लधो लह्यो भवनो पार, शास्वत सुख पाम्या घणा हो लाल। तिम भवि सेवो जाण, नव निधि पामो नहीं मणा हो लाल ॥ ४ ॥ महामुनि तणा वखाण, श्रीजी पासै छै भला हो लाल। दानविजय मतिवंत, पं० पद सुं जाणो सला हो लाल ॥५॥ जावो हीरा खाण, विद्याविजय ऊपनो हो लाल । रामविजय मन जीत, सागर सुं ते नीपनो हो लाल ॥ ६ ॥ गीतारथ गुणवंत, नायक जय पद पामीयो हो लाल । माणक माणक दीव, केसर जय पद धामीयो हो लाल ॥७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org