Book Title: Mahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Author(s): Mahavir Jain Vidyalaya Mumbai
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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मेड़तासे विजय जिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र
भंवरलाल नाहटा
जैन धर्ममें तीर्थंकरोंके बाद आचार्यों का उल्लेखनीय स्थान है। क्योंकि जैन शासनका संचालन उन्हीं के
' द्वारा होता है। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चतुर्विध संघको धर्ममें प्रवृत्त करानेका और शासन रक्षणका भार उन्हीं पर होता है। इसलिये जिस तरह राजा-महाराजाओंका राज्य शासन चलता है उसी तरह आचार्योंका धर्म-शासन। राजाओंकी तरह ही उनका मान-सम्मान और आज्ञाओंका पालन किया जाता है। जैन शासनको इन आचार्योंने ही बडी सूझ-बूझसे अब तक टिकाये रखा और सब प्रकारसे उन्नति की। उनके आगमनसे धर्म जागृतिका स्रोत उमड पडता है। इसलिये प्रत्येक ग्रामनगरोंके श्रावक-श्राविका संघ, आचार्योको अपने यहां बुलाने, चातुर्मास करनेको उत्कंठित रहता है। उन्हें अपने यहां पधारनेके लिये जो विज्ञप्ति या विनंतिपत्र भेजे जाते थे वे इतने विद्वत्ता और कलापूर्ण तैयार किये जाने लगे कि एक तरहसे वे खण्डकाव्य और चित्र-गेलेरी जैसे बन गये। ऐसे महत्वपूर्ण और वैविध्यपूर्ण अनेको विज्ञप्तिपत्र आज भी प्राप्त हैं। बडौदासे सचित्र विज्ञप्तिपत्रों संबंधी एक ग्रन्थ काफी वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था। इसके बाद संस्कृतके अनेक विज्ञप्ति-काव्योंका एक संग्रह मुनि जिनविजयजीने प्रकाशित किया था। पर अभी तक बहुतसे ऐसे महत्वपूर्ण विज्ञप्तिपत्र इधर-उधर बिखरे पड़े है जिनकी ओर किसीका ध्यान ही नहीं गया। यहां ऐसे ही एक सचित्र विज्ञप्तिपत्रकी नकल प्रकाशित की जा रही है, जो गुजरात और राजस्थान इन दोनोंके लिये विशेष महत्वपूर्ण है। अबसे १५५ वर्ष पहले(संवत् १८६७)को यह पत्र मेड़तेके श्रीसंघकी ओरसे वीरमपुर स्थित तपागच्छके आचार्य विजयजिनेन्द्रसूरिको भेजा गया था। अभी यह पत्र कलकत्ताकी गुजराती तपागच्छसंघकी लायब्रेरीमें सुरक्षित है। वहीं एक और सचित्र विज्ञप्तिपत्र है, जो तपागच्छकी सागर शाखाके कल्याणसागरसूरिको अहमदाबाद भेजा गया था पर उसमें चित्रोंके नीचे वाला अंश अब प्राप्त नहीं हैं।
मेड़तेका सचित्र विज्ञप्तिपत्र ३२ फूट लम्बा है जिसमें १७ फुट तक तो चित्र हैं और १५ फूटमें संस्कृत और मारवाडी भाषाका गद्य-पद्यमें लेख है। यहां सर्वप्रथम चित्रोंका संक्षिप्त विवरण दे दिया जाता है। फिर मूल लेखकी नकल दी जायगी। चित्रोंका प्रारम्भ मंगल कलशसे होता है
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