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महावीरका बुनियादी
मार्ग
आज से हम एक ऐसे समुद्र-तट पर चहलकदमी करने का प्रयत्न करेंगे जहाँ से हमें इस किनारे का सौन्दर्य तो नज़र आएगा ही, साथ-ही-साथ प्रयास रहेगा कि अथाह समुद्र के उस छोर को देखने की कोशिश कर सकें। एक किनारा यह है जहाँ हम खड़े हैं और दूसरा किनारा वह है जहाँ से हम सब लोगों के लिए एक मद्धिम पुकार आ रही है। ऐसे लग रहा है जैसे मीरा का करताल बज रहा हो, कहीं तुलसीदास के चंदन घिसने की आहट हो रही हो, कहीं से मोहन की मुरलिया का आमंत्रण मिल रहा हो, तो कहीं से महावीर का मौन मुखरित होकर हम सब लोगों के भीतर मुक्ति की प्यास जगा रहा हो।
इस किनारे का आनन्द तो दुनिया के हर व्यक्ति ने लेने का प्रयत्न किया है लेकिन उस किनारे का आनन्द तो केवल उन्हीं ने लिया जो महावीर की तरह संन्यासी होकर निकल पड़े या बुद्ध की तरह अभिनिष्क्रमण कर गए या मीरा की तरह दीवाने होकर घरबार छोड़ निकल चले। अभी हम लोग उस किनारे के आनन्द से वाक़िफ़ नहीं हैं, लेकिन हृदय में उठती हुई हिलोर इस बात की अभीप्सा और प्यास जगा रही है कि उस किनारे पर भी कुछ है। उस किनारे की अपनी रोशनी है, उसका अपना आनन्द और स्वाद है। जब हम शिखरों की
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