Book Title: Mahabharat Samhita Part 05
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ * 18. 1] हरिवंशपर्व [18. 28 काम्पिल्ये नगरे ते तु ब्रह्मदत्तपुरोगमाः / मार्कण्डेय उवाच / जाताः सप्त महात्मानः सर्वे विगतकल्मषाः // 14 ते योगधर्मनिरताः सप्त मानसचारिणः / स्मृतिमन्तोऽत्र चत्वारत्रयस्तु परिमोहिताः / वाय्वम्बुभक्षाः सततं शरीराण्युपशोषयन् / / 1 स्वतस्त्वणुहाज्जज्ञे ब्रह्मदत्तो महायशाः / राजा विभ्राजमानस्तु वपुषा तद्वनं तदा।। यथास्यासीत्पक्षिभावे संकल्पः पूर्वचिन्तितः // 15 चचारान्तःपुरवृतो नन्दनं मघवानिव / / 2 छिद्रदर्शी सुनेत्रश्च तथा वाभ्रव्यवत्सयोः / स तानबुध्यत्खचरान्योगधर्मात्मकान्बुधः / जातौ श्रोत्रियदायादौ वेदवेदाङ्गपारगौ // 16 निर्वेदाच्च तमेवार्थमनुध्यात्वा पुरं ययौ // 3 सखायौ ब्रह्मदत्तस्य पूर्वजातिसहोषितौ। अणुहो नाम तस्यासीत्पुत्रः परमधार्मिकः / पाश्चालः पञ्चमस्तत्र कण्डरीकस्तथापरः // 17 अणुधर्मरतिनित्यमणुहोऽध्यगमत्पदम् / / 4 पाञ्चालो बढ्चस्त्वासीदाचार्यत्वं चकार ह / प्रादात्कन्यां शुकस्तस्मै कृत्वीं पूजितलक्षणाम् / द्विवेदः कण्डरीकस्तु छन्दोगोऽध्वर्युरेव च // 18 सत्त्वशीलगुणोपेतां योगधर्मरतां सदा // 5 सर्वसत्त्वरुतज्ञश्च राजासीदणुहात्मजः / सा ह्युद्दिष्टा पुरा भीष्म पितृकन्या मनीषिणा / पाश्चालकण्डरीकाभ्यां तस्य संविदभूत्तदा // 19 सनत्कुमारेण तदा संनिधौ मम शोभना // 6 ते ग्राम्यधर्मनिरताः कामस्य वशवर्तिनः / सत्यधर्मभृतां श्रेष्ठा दुर्विज्ञेयाकृतात्मभिः। पूर्वजातिकृतेनासन्धर्मकामार्थकोविदाः // 20 योगा च योगपत्नी च योगमाता तथैव च। अणुहस्तु नृपश्रेष्ठो ब्रह्मदत्तमकल्मषम् / यथा ते कथितं पूर्व पितृसर्गेषु वै मया // 7 अभिषिच्य तदा राज्ये परां गतिमवाप्तवान् // 21 विभ्राजस्त्वणुहं राज्ये स्थापयित्वा नरेश्वरः / ब्रह्मदत्तस्य भार्या तु देवलस्यात्मजाभवत् / आमत्र्य पौरान्प्रीतात्मा ब्राह्मणान्स्वस्ति वाच्य च। असितस्य योगदुर्धर्षा संनतिर्नाम भारत // 22 प्रायात्सरस्तपश्चर्तुं यत्र ते सहचारिणः // 8 तामेकभावसंयुक्तां लेभे कन्यामनुत्तमाम् / स वै तत्र निराहारो वायुभक्षो महातपाः। संनति संनतिमती देवलाद्योगधर्मिणीम् // 23 त्यक्त्वा कामांस्तपस्तेपे सरसस्तस्य पार्श्वतः // 9 शेषास्तु चक्रवाका वै काम्पिल्ये सहचारिणः / तस्य संकल्प आसीञ्च तेषामन्यतरस्य वै।। ते जाताः श्रोत्रियकुले सुदरिद्रे सहोदराः // 24 पुत्रत्वं प्राप्य योगेन युज्येयमिति भारत // 10 धृतिर्महामना विद्वांस्तत्त्वदर्शी च नामतः / कृत्वाभिसंधि तपसा महता स समन्वितः / वेदाध्ययनसंपन्नाश्चत्वारोऽच्छिन्नदर्शिनः // 25 महातपाः स विभ्राजो विरराजांशुमानिव // 11 तेषां संविदथोत्पन्ना पूर्वजातिकृता तदा / ततो विभ्राजितं तेन वैभ्राजमिति तद्वनम् / ते योगनिरताः सिद्धाः प्रस्थिताः सर्व एव हि // सरस्तच्च कुरुश्रेष्ठ वैभ्राजमिति शब्दितम् // 12 आमत्रय पितरं तात पिता तानब्रवीत्तदा / यत्र ते शकुना राजश्चत्वारो योगधर्मिणः / अधर्म एष युष्माकं यन्मां त्यक्त्वा गमिष्यथ // 27 योगभ्रष्टास्त्रयश्चैव देहन्यासकृतोऽभवन् // 13 / दारिद्र्यमनपाकृत्य पुत्रार्थांश्चैव पुष्कलान् / -37

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234