Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 11
________________ जहाँ लेश्या सम्बन्धी पाठ स्वतंत्र रूप में मिल गया है वहाँ हमने उसे उसी रूप में ले लिया है लेकिन जहाँ लेश्या के पाठ अन्य विषयों के साथ सम्मिश्रित हैं वहाँ हमने निम्नलिखित दो पद्धतियाँ अपनाई हैं : १. पहली पद्धतिमें हमने सम्मिश्रित पाठों से लेश्या सम्बंधी पाठ अलग निकाल लिया है तथा जिस संदर्भ में वह पाठ आया है उस संदर्भ को प्रारम्भ में कोष्ठक में देते हुए उसके बाद लेश्या सम्बंधी पाठ दे दिया है, यथा-भग० श ११ । उ १ का पाठ। इसमें उत्पल वनस्पतिकाय के सम्बंध में विभिन्न विषयों को लेकर पाठ है। हमने यहाँ लेश्या सम्बन्धी पाठ लिया है तथा उत्पल सम्बन्धी पाठ को पाठ के प्रारम्भ में कोष्ठक में दे दिया है-- (उप्पले णं एगपत्तए ) ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा नीलसा काऊलेसा तेऊलेसा ? गोयमा ! कण्हलेसे वा जाव तेऊलेसे वा कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काऊलेस्सा वा तेऊलेस्सा वा अहवा कण्हलेसे य नीललेसे य एवं एए दुयासंजोगतियया. संजोगचउक्कसंजोगेणं असीइ भंगा भवंति-विषयांकन '५३ १५.६ । पृ० ६६ । २. दूसरी पद्धति में हमने सम्मिश्रित विषयों के पाठों में से जो पाठ लेश्या से सम्बन्धित नहीं हैं उनको बाद देते हुए लेश्या सम्बंधी पाठ ग्रहण किया है तथा बाद दिए हुए अंशों को तीन क्रॉस (xxx) चिह्नों द्वारा निर्देशित किया है, यथा-भग• श २४ । उ १ । प्र ७, १२पज्जता (त्त) असन्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववजित्तए xxx तेसि णं भंते जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ। तं जहा कण्हलैस्सा, नील. लेस्सा, काऊलेस्सा-विषयांकन '५८.११। गमक १। पृ० १००। इस उदाहरण में हमने प्रश्न ७ से प्रारम्भिक पाठ लेकर अवशेष पाठ को बाद दे दिया है तथा उसे क्रॉस चिह्नों द्वारा निर्देशित कर दिया है। प्रश्न ८, ६, १० तथा ११ को भी हमने बाद दे कर प्रश्न १२ जो कि लेश्या सम्बन्धी है ग्रहण कर लिया है। कई जगहों पर इन पद्धतियों के अपनाने में असुविधा होने के कारण हमने पूरा का पूरा पाठ ही दे दिया है। मूल पाठों में संक्षेपीकरण होने के कारण अर्थ को प्रकट करने के लिए हमने कई स्थलों पर स्वनिर्मित पूरक पाठ कोष्ठक में दिए हैं, यथा -कडजुम्मकडजुम्म सन्निपंचिंदिया णं भंते! xxx (कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ)? कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा | xxx एवं सोलससु वि जुम्मेसु भाणियव्वं-- विषयांकन '८६६। पृ० २२०। यहाँ 'कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ' पाठ जो कोष्टक में है सूत्र संक्षेपीकरण में बाद पड़ गया था उसे हमने अर्थ की स्पष्टता के लिए पूरक रूप में दे दिया है । वर्गीकृत उपविषयों में हमने मूल पाठों को अलग-अलग विभाजित करके भी दिया [ 10 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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