Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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65 लाल के दशकवेडा तीर्थ की पावन भूल
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को दो विद्वान शिष्य दिये है। मुनिश्री लेवेन्द्रशेखरविजयजी और मुनिश्री लोकेन्द्रविजयजी जो बाल्यकाल से ही
गुरुगच्छ की सेवा के लिए समर्पित है। मोहनखेडा तीर्थ की पावन भूमि पर वि.सं. २०४५ को चातुर्मास काल के दौरान कोंकण क्षेत्र से इन्दापुर श्री संघने, गुरु जयन्ती हेतु भाव भरी प्रार्थना दोनों मुनिवरों को की। पूज्य आचार्य देवेश ने क्षेत्र स्पर्शना से विशेष जिन-शासन प्रभावना की संभावना को देखते हुए आज्ञा प्रदान की।
त्रिस्तुतिक संघ में मुनियों की कोंकण क्षेत्र में यह प्रथम धर्म यात्रा थी। दो वर्षों तक निरन्तर विचरण करते हुए मुनिवरों ने कोंकण क्षेत्र में अद्भुत धर्म जागृति की एवं नये-नये कीर्तिमान स्थापित किये।
पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व महान है। आप विद्वान है किन्तु अभिमान रहित सरल प्रकृति के है। आप ओजस्वी वक्ता है। किन्तु शब्दों के आडम्बर वाले नहीं है, बल्कि सारयुक्त प्रभावशाली वक्ता है। आप लेखक, वक्ता, प्रवचनकार, शास्त्रज्ञ, साधनाशील व्यक्तित्व के धनी है। और इसके साथ ही अपने गुरुजनों के प्रति अत्यन्त विनयी, छोटो के प्रति वात्सल्य पूर्ण हृदय एवं दीन दुखियों के प्रति गहरी करुणा है। धर्म प्रचार की दृष्टि से पत्र-पत्रिकाओं को प्रोत्साहित किया है। जैन समाज को समन्वय का संदेश देकर संगठन के सूत्र को सुदृढ़ किया। एवं धार्मिक वात्सल्य भावना से श्री पार्श्वपद्मावती साधर्मिक फाउन्डेशन की स्थापना की है। आपके संपर्क में आने वाले प्रत्येक भाई बहन आपके बहुआयामी एवं बहुमुखी प्रतिभा से सहज ही प्रभावित हो जाते हैं। आपके आत्मीय सहज गुणों का ही यह अभिनन्दन वान्थ है।
विगत दो वर्षों से समस्त कोंकण क्षेत्र में धर्मउद्योत किया है। मोहने, नेरल, मोहोपाडा, कामाठीपुरा, बोरीवली, कर्जत आदि नगरों में जिन बिम्ब एवं गुरु बिम्बों की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा के कार्यक्रम करवाये। कोंकण के विभिन्न गावों में जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव, श्री पार्श्वपद्मावती महापूजनों के विराट आयोजनों से परमात्म भक्ति का अलख जगाया। कल्याण एवं गोरेगाँव में ऐतिहासिक उल्लेखनीय चातुर्मास किये। आप श्री के चरण ने जिस क्षेत्र को पावन किया वह क्षेत्र धर्म के रंग में रंग गया। आपके अभूतपूर्व कर्तृत्व से महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र एवं कोंकण क्षेत्र श्रध्दान्वित हो गया।
आपकी इस अनोखी एवं अविस्मरणिय जिनशासन प्रभावना के प्रति श्रदा भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए समस्त कोंकण प्रदेश के अनेकानेक श्री संघो ने मिलकर प्रान्तीय स्तर पर प्रात: स्मणिय दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. के गुरु पर्वोत्सव पर वि.सं. २०४७ पोष शुक्ला ७ सोमवार २४ दिसम्बर
RAMAN १९९० के पावनीय दिवस पर महाराष्ट्र प्रदेश के कल्याण के निकट मोहने नगर में विशाल जन मेदनी की उपस्थिति में 'कोंकण केशरी' पद से विभुषित किया
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ममता यदि ज्ञान पूर्ण हो तो वह सांसारिकों के लिये उत्तम है। परन्तु जो ममता ज्ञान के प्रकाश से दूर हो वह ममता
मनुष्य को अनेक बार दूरातिदूर फेंक देती है।
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