Book Title: Kumarpal Pratibodh Prabandh
Author(s): Mafatlal Zaverchand Gandhi,
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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सम्पूर्णाभिग्रहो राजा, प्राह सूरिवरं प्रति । युष्माभिर्जीवितं दत्तं, ममाभिग्रहपूरणात् ॥९॥ गृहाण तदिदं राज्यमित्युक्तः सूरिरब्रवीत् । रक्ष जीववधं राजन्नवरात्रद्वयेऽपि हि ॥१०॥ तथेति कृत्वा संसाध्य, सुराष्ट्रमंडलं नृपः। चकार वामनस्थल्यां, सज्जनं दंडनायकम् ॥११॥ ततो मदनपालेन, विज्ञप्तः कर्णभूपतिः। सार्ध धनेश्वराचार्यैरारूढो रैवताचलम् ॥ १२॥ सजनोऽपि स्वगुरुभिः, श्रीभद्रेश्वरसूरिभिः । चतुर्विधेन संघेन, साध राजानमन्वगात् ।। १३ ॥
श्रीनेमिभवनं जीर्ण, वीक्ष्य काष्ठमयं ततः। सजनो गुरूणाऽऽदिष्टे, जीर्णोद्धारकृते कृती ॥ १४ ॥ यतः-"जिणभुवणाई जे उद्धरंति भत्तीए सडिअपडिआई। ते उद्धरन्ति अप्पं, भीमाओभवसमुदाओ॥१५॥ अथवा-अप्पा उद्धरिउ चिय उद्धरिओ तह य तेहिं नियवंसो। अन्ने अभव्वसत्ता अणुमोअंता यजिणभवणं
॥१६॥ इति श्राद्धदिनकृत्ये" युक्तमिदमुपदेशकथनं साधूनाम् । यतः-- "राया अमच्च सिहि कुडुबिए वावि देसणं काउं। जिण्णे पुव्वाययणे जिणकप्पी वावि कारवई" ॥१७॥ जीर्णोद्धाराय विज्ञप्तः, सज्जनेन नृपस्ततः । सुराष्ट्रोद्राहितं दत्त्वाऽणहिल्लपुरमाययौ ॥ १८ ॥ अथ भद्रेश्वरः सूरिः, सज्जनेन सहाष्टमम् । तपः कृत्वांबिकादेवीमाह्वानयददीनधीः ॥ १९॥ प्रत्यक्षीभूय साऽप्यूचे, युवाभ्यां किमहं स्मृता । मरिराह नेमिचैत्यमुद्धरिष्यति सज्जनः ॥२०॥
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