Book Title: Kumarpal Pratibodh Prabandh
Author(s): Mafatlal Zaverchand Gandhi,
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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कुमार०
॥ ४२ ॥
अस्थि अणता जीवा जेहिं न पत्तो तसाइ परिणामो । उप्पज्जन्ति चयंति य पुणो वि तत्थेव तत्थेव ||७|| सामग्अिभावाओ ववहाररासीय अप्पवेसाओ । भव्वा वि ते अणंता, जे सिद्धिसुहं न पावन्ति ||८|| सिद्धन्ति जत्तिया खलु, इह यं ववहाररासिमज्झाओ । इन्ति अणाइवणस्सइ, मज्जाओ तत्तिया चैव ॥९॥ अक्खीणजीवखाणि, हुंति निगोआउज्जिणसमक्खाया । तेण न दोसो संसार - रित्तया संभवो होइ ॥ १०॥ लोए असंखजोयण-माणे पइजोयणं गुलासंखा । पइतं असंखयं सा पइअसंखअसंखया गोला ॥ ११॥ गोला असंखनिग्गोओ, सोणंतजिउ जियं पर पएसा । असंख पइपएसं, कम्माणं वग्गणाऽणंता ॥१२॥ पइवग्गणं अनंता, अणूय पइ अणुअणंत पज्जाया । एवं लोगसरूवं भाविज्ज तहत्ति जिणवुत्तम् ॥१३॥ पत्थेण व कुडवे व जह कोइ मविज्ज सव्वधन्नाई । एवं मविज्जमाणा हवन्ति लोगा अनंताओ || १४ ॥ लोगागासपएसे, निगोअजीवं खिवेइ इक्किकम् । एवं मविज्जमाणा हवंति लोगा अणंताओ ||१५|| एवं जीवतत्वे व्याख्याते सति कश्चित्तीर्थान्तरीयः प्राह हे महात्मन् ! एवं युष्मदुक्तयुक्त्या सूक्ष्मैर्बादिरैश्च त्रसैः स्थावरैश्व जीवैः सर्वत्र व्याप्ते लोके कथमहिंसकत्वं नाम कथं च सर्वप्राणातिपातविरतिव्रतं तदा श्रीसूरयः प्राहुः भो वादिन् ! तत्वाऽतत्त्वपरिज्ञानानभिज्ञत्वेनेयं भवदुक्तिः यतः हिंसापरिणामपरिणत एवात्मा हिंसक इत्युच्यते न त्वपरिणतस्या हिंसकत्वात् । यदुक्तमहिंसापरमवेदिभिः श्रीसर्वज्ञैः --
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अज्झत्थविसोहीए जीवनिकाएहिं संकुडे लोए । देसिअमहिंसकत्तं जिणेहिं तेलुकदंसीहिं ॥ १ ॥ नाणी कम्म सखयद्धमुट्ठिउ नो डिओउ हिंसाए, जयइ असढं अहिंसत्थमुट्ठिउ अवहउ सो उ ॥२॥
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प्रतिबोध प्रबंधः
॥ ४२ ॥
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