Book Title: Kumarpal Pratibodh Prabandh
Author(s): Mafatlal Zaverchand Gandhi,
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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कुमार ॥४४॥
विषभमित्तगहणं व सग्गामपरग्गामे एब खित्तम्मि, काले अभिग्गहो पुण आईमज्झ तेहेव अवसाणे, अपत्ते सइकाले आई ठिई मज्झतईयं ते उखित्तमाई वरगा भावजुया खलु अभिग्गहा हुन्ति गायन्तो व रुयंतो जं देइनिसनमाईया। रसाःक्षीरदधिधृतादित्यागस्तपः । उक्तं चःविगई विगईभीओ, विगइगयं जो यमुंजए साहू । विगई विगइसहावा विगई विगई बला नेइ । कायक्लेशो वीरासनादिभेदाचित्रः कायोत्सर्गादि मलीनता चतुर्धा ॥ इंदियकसायजोए पडुच्च संलीणया मुणेयव्वा, तह य विवित्ता चरिया पन्नत्ता वीयरागेहिं । सद्देसु अ भद्देसु पावएसु सोयविसयमुवगएसु, रुटेण तुट्टेण व रुटेण व समणेण सया न होयव्वं ॥
एवं शेषेन्द्रियेषु निरोधकरणे संलीनता । उक्तं च बाह्यं तपः पायच्छित्तं । पावं छिन्दई जम्हा, पायच्छित्तं उ भन्नए तम्हा । पाएण वा विचित्तं, विसोहइ तेण पच्छित्तम् ॥ तद्दशधा
आलोयणपडिकमणे मीसविवेगे तहा वि उस्सग्गे। तवच्छेयमूल अणवठ्ठयाय पारंचिए चेय ॥
प्रमाददोष व्युदासप्रमादनैः शल्या नवस्थाब्यावृत्तिमर्यादात्याग संयमदाढर्याराधनादिप्रायश्चित्तफलं, विनीयतेऽष्टप्रकारं कर्म येन स विनयः स च त्रिधा कायवाग्मनोभिर्यथा
. अभ्युट्ठाणं अंजलिं आसणदाणं अभिग्गहकहाअ अणुगच्छण संसाहण काय अट्ठविहे हिअमिअअपुरुसवाई अणुवीई भासिवाई उ विणउ अकुसलमणोनिरोहो कुसलस्सउदीरणं चेव वैयावृत्यं दशधा आयरिउवज्ज्ञाए थेरतवस्सीगिलाणसेहाणं साहम्मियकुलगण संघसंगयं तमिह कायव्वम् ।
|॥४४॥
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