Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 6
________________ ३२. विद्यानन्दी ३३. रामचन्द्र ३४, रामकीर्ति ३५. अभयचन्द्र ३६. नरचन्द्र ३७ नाराचन्द्र ३८. नमनन्दी ३९. हरिश्चन्द्र (हरिनन्दी) ४० महीचन्द्र ४१. माधवचन्द्र ४२. लक्ष्मीचन्द्र ४३. गुणकीर्ति ४४. गुणचन्द्र ४५. वासवेन्दु ( वासवचन्द्र) ४६. लोकचन्द्र ४७ श्रुतकीर्ति ४८. भानुचन्द्र ४९. महाचन्द्र ५०. माघचन्द्र ५१. ब्रह्मनन्दी ५२. शिवनन्दी ५३. विश्वचन्द्र ५४. हरनन्दी ५५. भावनन्दी ५६. सुरकीर्ति ५७ विद्यानन्द ५८. सूरचन्द्र ५९ माघनन्दी ६०. ज्ञाननन्दी ६१. गंगनन्दी ६२. सिंहकीर्ति ६३. हेमकीर्ति ६४. चारूकीर्ति ६५. नेभिनन्दी ६६. नामकीर्ति ६७, नामकीर्ति ६८ नरेन्द्रकीर्ति ६९. श्री चन्द्र ७०. पद्मकीर्ति ७१. वर्द्धमान कीर्ति ७२. अकलंकचन्द्र ७३. ललितकीति ७४. त्रैविद्यविद्याधीश्वर केशवचन्द्र ७५. चारूकीर्ति ७६. अभयकीर्ति ७७. वसन्तकीर्ति ७८. शुभकीर्ति ७९. धर्मचन्द्र ८०. रत्नकीर्ति ८९ रनकीर्ति ८२. पूज्यपाद ८३. प्रभाचन्द्र ८४. पद्मनन्दी ८५. सकलकीर्ति ८६. भुवनकीर्ति ८७ ज्ञानभूषण ८८. विजयकीर्ति ८९. शुभचन्द्र ९०. सुमतिकीर्ति ९९. गुणकीर्ति ९२. वादिभूषण ९३. रामकीर्ति ९४. यश: कीर्ति ९५. पद्मनन्दी ९६. देवेन्द्रकीतिं ९७ क्षेमकीर्ति ९८. नरेन्द्र कीर्ति ९९. विजयकीर्ति १०० नेमिचन्द्र १०१. चन्द्रकीर्ति । इसप्रकार शुभचन्द्राचार्य ( प्रथम ) ने अपनी वंशावली का स्मरण करते हुए सारस्वत गच्छ के कर्ता आचार्य पद्मनन्दी ( कुन्दकुन्दाचार्य ) को स्मरण एवं वंदन किया हैं । डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार भगवान महावीर के ४७० वर्ष बाद विक्रम राजा का जन्म हुआ । विक्रम राजा के दो वर्ष बाद सुभद्र एवं सुभद्र के २ वर्ष बाद भद्रबाहु स्वामी पट्टधर हुए । इन्हीं भद्रबाहु के श्रेष्ठ शिष्य गुप्तिगुप्त यति माने गये हैं । इनके तीन नाम हैं- गुप्तिगुप्त, अहंगुली, विशाखाचार्य । गणधर पट्टावली में आपको अहंडली के नाम से स्मरण किया है यथा : लोहाचार्य पुरापूर्वज्ञानं चक्रधरं नमः । अर्हद्वलिं भूतबलिं माघनन्दि नमुत्तमम् ॥ ७ ॥ ग.प. अर्थात् लोहाचार्य पूर्व ज्ञान के धारक आचार्य हुए। अर्हद्वलि भूलबलि माषनन्दि को नमन करता हूँ ॥ ॥ शुभचन्द्राचार्य प्रथम ने शुतिगुप्त का इसी प्रकार कथन किया है । यथा: श्रीमान् शेष नरनायकः वन्दिताङ्क्षीः श्री गुप्तिगुप्त ( १ ) इति विश्रुति नामधेयः यो भद्रबाहु ( २ ) मुनिपुंड्. गव-पट्टपद्मः सूर्यः स वो दिशतु निम्मल संघ वृद्धिम् ॥१ ॥ श्रु. प. {1

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