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द्वितीय वक्षस्कार
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काल-विस्तार
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एएणं जोयणम्प्रमाणेणं जे पल्ले, जोयणं आयामविक्खंभेणं, जोयणं उड्ढ उच्चसेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं से णं पल्ले एगाहियबेहियतेहिय उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूदाणं संमट्ठे, सण्णिचिए, भरिए वालग्गकोडीणं । ते णं वालग्गा णो कुत्थेज्जा, णो परिविद्धंसेज्जा, णो अग्गी डहेज्जा, णो वाए हरेज्जा, णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । तभी णं वाससए वाससए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे, णीरए, णिल्लेवे णिट्ठिए भवइ, से तं पलि ओवमे ।
एएसिं पल्लाणं, कोडाकोड़ी हवेज्ज दसगुणिया ।
तं लागरोवमस्स, एगस्स भवे परीमाणं ॥ १॥
एए सागरोवमम्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा १, तिणि सागरोवमकोड़ाक्रीडीओ कालो सुसमा २, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा ३, एगा सागरोवमकोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिओ कालो दुस्समसुसमा ४, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समा ५, एक्कीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा ६, पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहरूलाई कालो दुस्समदुस्समा १ एवं पडिलोमं णेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुलमा ६, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दससागरोत्रमकोड़ाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी ।
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शब्दार्थ - सुहुम- सूक्ष्म, समुदयसमिइसमागमेणं - एकीभावापन्न समुदाय, वावहारिए - व्यावहारिक, णिफणड़ - निष्पन्न होता है, सत्यं शस्त्र, क्रमड़ काट सकता, छेत्तुं - भित्तुं - छिन्नभिन्न करने में, सुतिक्खेण - तीखा, वयंति कहते हैं, आई- आदि, लिक्खाओ - लीख । भावार्थ - हे भगवन्! औपमिक काल का क्या स्वरूप है - वह कितने प्रकार का कहा
गया है?
हे गौतम! औपमिक काल पल्योपम तथा सागरोपम के रूप में दो प्रकार का है। हे भगवन्! पल्योपम काल किस प्रकार का होता है?
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