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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
धारण करने योग्य रत्नों के आभूषण, कड़े, भुजबंद, वस्त्र तथा अन्यान्य आभरण लेकर, वह तेज गति से राजा के निकट पहुँचा, उपहार भेंट किए यावत् राजा के आदेशानुसार श्रेणी-प्रश्रेणी जनों ने अष्टदिवसीय महोत्सव संपन्न कर राजा को सूचित किया।
तमिसा - विजय
तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए जाव पच्चत्थिमं दिसिं तिमिसगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था, तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं जाव पच्चत्थिमं दिसिं तिमिसगुहाभिमुहं पयायं पासइ २ त्ता हट्टतुट्ठचित्त जाव तिमिसगुहाए अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवणोयणविच्छिण्णं जाव कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ २ त्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव कयमालगं देवं मणसि करेमाणे २ चिट्ठइ, तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव वेयड्डगिरिकुमारस्स णवरं पीइदाणं इत्थीरयणस्स तिलगचोदसं भंडालंकारं कडगाणि य जाव आभरणाणि य गेण्हइ २ ता ताए उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ .त्ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चप्पिणंति। - शब्दार्थ - कवए - कवच, सरासण - धनुष, पट्टिए - प्रत्यंचा, उप्पीलिए - आरोपित की-चढाई, पिणद्ध - धारण किया, आउह - आयुध, पहरण - शस्त्र। । भावार्थ - आठ दिनों के महोत्सव की संपन्नता के अनंतर वह दिव्य चक्ररत्न यावत् 'आयुधशाला से बाहर निकलकर पश्चिम दिशा में तमिस्रा गुफा की ओर अग्रसर हुआ। जब राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न को यावत् पश्चिम दिशा में बढ़ते हुए देखा तो उसके मन में बड़ा हर्ष और परितोष हुआ यावत् उसके न अधिक पास न अधिक दूर बारह योजन लम्बी तथा नौ योजन चौड़ी सैन्य छावनी लगाई यावत् कृतमाल देव को उद्दिष्ट कर राजा ने पौषधशाला में ब्रह्मचर्य पूर्वक तेले की तपस्या स्वीकार की यावत् कृतमाल के संबंध में चिंतन निरत रहा। राजा
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