Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 478
________________ सप्तम् वक्षस्कार - गति क्रम गोयमा ! छप्पण्णं खलु भाए विच्छिण्णं चंदमंडलं होइ ।. अट्ठावीसं भाए बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥१॥ अडयालीसं भाए विच्छिण्णं सूरमण्डलं होइ । चवीसं खलु भाए बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ २ ॥ दो कोसे य गहाणं णक्खत्ताणं तु हवइ तस्सद्धं । तस्सद्धं ताराणं तस्सद्धं चेव बाहल्लं । शब्दार्थ - कवित्थ - कटहल, फालिया - स्फटिक । भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में २८ नक्षत्रों के अन्तर्गत कौनसा नक्षत्र समस्त मंडलों के • भीतर के मंडल से होता हुआ गमन करता है? कौनसा नक्षत्र समस्त मंडलों के नीचे होता हुआ गमन करता है? कौनसा नक्षत्र समस्त मंडलों के ऊपर होता हुआ गमन करता है ? हे गौतम! अभिजित नक्षत्र सर्वाभ्यंतर मंडल में से होता हुआ, मूल नक्षत्र सभी मंडलों से बाहर होता हुआ, भरणी नक्षत्र समग्र मंडलों के नीचे होता हुआ एवं स्वाति नक्षत्र समस्त मंडलों के ऊपर होता हुआ गति करता है । हे भगवन्! चन्द्र विमान का संस्थान कैसा आख्यात हुआ है ? हे गौतम! चन्द्र, विमान ऊपर की ओर मुंह कर रखे हुए आधे कटहल के फल के आकार का कहा गया है। वह सम्पूर्णतः स्फटिकमय है। सूर्य आदि सभी ज्योतिष्क देवों के विमान इसी प्रकार के हैं, यह ज्ञातव्य है । हे भगवन्! चन्द्रविमान आयाम - विस्तार एवं ऊँचाई में कितना कहा गया है ? २८ हे गौतम! चन्द्रविमान योजन चौड़ा तथा वृत्ताकार होने से उतना ही लम्बा एवं योजन ऊँचा है। ५६ ६१ ६१ सूर्यव ४८ ६१. योजन चौड़ा एवं उतना ही लम्बा तथा योजन ऊँचा है। २८ ६१ ग्रहों, नक्षत्रों एवं ताराओं के विमान क्रमशः दो कोस, एक कोस तथा अर्द्धको विस्तार युक्त हैं। ग्रह आदि विमानों की ऊँचाई उनके विस्तार से आधी होती है। Jain Education International ४६१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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