Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 481
________________ ४६४ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र धावणधोरणतिवइजइण सिक्खियगईणं ललंतलामगललायवरभूसणाणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं पीवरवट्टियसुसंठियकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्त-रमणिजवालपुच्छाणं तणुसुहमसुजायणिद्धलोमच्छविहराणं मिउविसयसुहुमलक्खण-पसत्थविच्छिण्णकेसरवालिहराणं ललंतथासगललाडवरभूसणाणंमुहमण्डग-ओचूलगचामरथासंगपरिमण्डियकडीणंतवणिजखुराणं तवणिजजीहाणं तवणिजतालुयाणं तवणिजजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं जाव मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलबीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया हयहेसियकिल-किलाइयरवेणं मणहरेणं पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति। गाहा - सोलसदेवसहस्सा हवंति चंदेसु चेव सूरेसु। अद्वैव सहस्साहं एक्केक्कंमी गहविमाणे॥१॥ चत्तारि सहस्साई णक्खत्तंमि य हवंति इक्किक्के। .. दो चेव सहस्साई तारारूवेक्कमेक्कंमि॥२॥. एवं सूरविमाणाणं जाव तारारूवविमाणाणं, णवरं एस देवसंघाएत्ति। शब्दार्थ - सुभगाणं - सुंदर, सुप्पभाणं - उत्तम प्रभा युक्त, विडंबियं - प्रकटित, महुगुलिय - जमे हुए शहद की गोली, केसरसटा - अयाल, उवसोहियाणं - उपशोभित, अफ्फोडिय - आस्फालन युक्त, जोत्तग - रस्सा, कुंभ - मस्तक, सोंड - सूंड, णिद्ध - स्निग्ध-चिकने, पत्तल - पलक, णिव्वण - निव्रण-घाव रहित, कोसी - खोल, लज्जु - रज्जु, अल्लीण - सुंदर, ककुह - ककुध-यूही, ईसिय - कुछ, बालिधाणाणं - पूंछ युक्त, तरमल्लिहायणाणं - तारुण्यावस्था युक्त, थासक - दर्पण। भावार्थ - हे भगवन्! चंद्र विमान का कितने सहस्त्र देव परिवहन करते हैं? हे गौतम! सोलह सहस्त्रदेव उसका परिवहन करते हैं। चन्द्र विमान के पूर्वी भाग में शंख के अधस्तन भाग निर्मल, स्वच्छ दही, गाय का दूध, फेन, रजत राशि के समान दीप्ति युक्त, सुंदर, स्थिर, सुदृढ़, कांत, प्रकृष्ट, गोलाकार, परिपुष्ट परस्पर, मिलित, विशिष्ट तीक्ष्ण दाढ़ों से व्यक्त मुख युक्त, लाल कमल के पत्र के समान सुकोमल तालु जिह्वा युक्त, जमे हुए मधु की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498